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आचार्य शङ्कर की बौद्ध दृष्टि
अनामिका सिंह
आचार्य शङ्कर जिस वैदिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं बौद्ध विचारधारा उससे भिन्न है। तथापि दोनों विचारधाराएँ एक ही देश की संस्कृति से जन्मीं हैं। इसलिए उनमें वैषम्य के साथ साम्य होना भी अवश्यंभावी है। इन दोनों विचारधाराओं को दर्शन के क्षेत्र में अपने-अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए परस्पर संवाद में संलग्न होना अपरिहार्य हो गया था। इस आवश्यकता में ब्रह्मसूत्र' ने अग्रणी भूमिका निभाई। इस ऐतिहासिक ग्रन्थ ने वैदिक साहित्य में विकीर्ण ब्रह्मविषयक विचारों को सूत्र शैली में एकत्र व व्यवस्थित कर प्रस्तुत किया तथा साथ ही वेदान्त के दृष्टिकोण से वैदिक, अवैदिक अन्य दर्शनों के साथ बौद्ध दर्शन के प्रति भी समालोचना की प्रवृत्ति दिखलाई। ब्रह्मसूत्र के पश्चात् संवाद की इस परम्परा का सीमित निर्वहन गौड़पाद ने किया। समन्वयात्मक वेदान्तीय अद्वैतवाद के प्रणेता आचार्य शङ्कर ने, शारीरक भाष्य में जहाँ एक ओर अपने सिद्धान्त का सयुक्तिक प्रतिपादन किया वहीं दूसरी ओर सूत्रों के माध्यम से (२/२/१८-३२) बौद्ध दर्शन के प्रति भी अपनी अभिनव दृष्टि का परिचय दिया। प्रस्तुत लेख का मुख्य उद्देश्य ब्रह्मसूत्र के इन्हीं १५ सूत्रों पर लिखे गए शारीरक भाष्य के माध्यम से बौद्ध दर्शन के प्रति आचार्य शङ्कर की दृष्टि का विवेचन करना है।
शारीरक भाष्य में उल्लिखित बौद्ध दर्शन के प्रधान बिन्दु बुद्ध, सम्प्रदाय, पारिभाषिक शब्द, अवधारणाएँ, युक्तियाँ आदि हैं। अत: इन्हीं के माध्यम से प्रस्तुत विषय पर आगे विचार किया जाएगा।
बुद्ध -
आचार्य शङ्कर के पूर्ववर्ती वेदान्ताचार्यों में ब्रह्मसूत्रकार ने बुद्ध के प्रति मौन धारण किया और गौड़पाद ने बुद्ध का स्पष्ट नामोल्लेख करते हुए उनके प्रति आस्था के संकेत दिए जिसे वेदान्त के प्रसङ्ग में ऐतिहासिक घटना माना जा सकता है। आचार्य शङ्कर ने, बुद्ध का उल्लेख बौद्ध दर्शन के उपदेष्टा के रूप में किया है। इसके अन्तर्गत बद्ध के व्यक्तित्व में कई अन्य विशेषण भी जोड़े गए हैं यथा - बुद्ध को असम्बद्ध * शोध छात्रा, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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