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________________ २४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३ हम दक्षिण भारत की दिगम्बर जैन जातियों के श्रावकों की ओर ध्यान दें तो ज्ञात होगा कि इनकी संख्या लाखों में होगी किन्तु भाषा, रीति-रिवाज की भिन्नता के कारण उनमें सामंजस्य स्थापित नहीं होता। सन्दर्भ : १. एच०वी० ग्लासनेप, जैनिज्म, भावनगर १९३७ ई०, पृ० ३२६-२७. २-५. विलास ए० संगवे, जैन कम्यूनिटी, ए सोशल सर्वे, द्वितीय संशोधित संस्करण, मुम्बई १९८० ई०, पृ० ७७-७९. त्रिलोकचन्द कोठारी, दिगम्बर जैन समाज, वैचारिक विकास एवं सामाजिक दर्शन (बीसवीं शताब्दी का समीक्षात्मक अध्ययन) अप्रकाशित शोध ग्रंथ, पृ० १०५. वही, पृ० १०६-१०७; जे० एल० जैन, दी जैन लॉ, आरा १९१६ ई०, पृ० १७. ८. एच०एच० रिसले, ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ बंगाल, भाग १, कलकत्ता . १८९१ ई०, पृ० ७. ९. कोठारी, पूर्वोक्त, पृ० ११३. १०. फूलचन्द शास्त्री अभिनन्दन ग्रंथ, सम्पादक - बाबूलाल जैन, वाराणसी १९८५ ई०. ११-१२. कस्तूरचन्द कासलीवाल, खण्डेलवाल जैन समाज का बृहद इतिहास, जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, बरकतनगर, जयपुर, प्रथम संस्करण, १९८९. ई०, पृ० ५२. १३. कस्तूरचन्द कासलीवाल, कविवर बुलाखीचन्द्र, बुलाकीदास एवं हेमराज, श्री महावीर ग्रंथ अकादमी, जयपुर १९८३ ई०, पृ० १०८-११४. १४. डॉ० माता प्रसाद गुप्त, जिनदत्तचरित, साहित्य शोध विभाग, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी, जयपुर १९६६ ई०, पृ० १. १५. रामजीत जैन एडवोकेट, जैसवाल जैन इतिहास, लश्कर १९८८ ई०. १६-१७. कस्तूरचन्द कासलीवाल, खण्डेलवाल जैन समाज का बृहद इतिहास, पृ० ५४-५५. १८-२०. कोठारी, पूर्वोक्त, पृ० १२०-१२१. २१. विलास ए० संगवे, पूर्वोक्त, पृ० ९२. २२. सुरेन्द्रकुमार जैन, गोलापूर्व जैन समाज इतिहास एवं सर्वेक्षण, पारस शोध संस्थान, सागर १९९६ ई०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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