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________________ १४२ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००३ डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के डॉ० मुकुलराज मेहता और प्रौद्योगिकी विभाग के डॉ० एन०के० सामरिया ने पंडितजी के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पूज्य पंडित जी एक ओर इस जहां काशी की पाण्डित्य परम्परा के शलाका पुरुष थे वहीं दूसरी उन्होंने प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषा के कई दुर्लभ ग्रन्थों का सम्पादन एवं राष्ट्रभाषा में अनुवाद करके भारतीय वाङ्मय की सेवा की। इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने भी पण्डितजी के प्रति अपने उद्गार व्यक्त किये। " स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास" का विमोचन सम्पन्न अमृतसर ११ नवम्बर : डॉ० सागरमलजी जैन और डॉ० विजयकुमार द्वारा लिखित एवं पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी द्वारा मानवमिलन के प्रेरक मुनिश्री मणिभद्र जी 'सरल' की प्रेरणा से प्राप्त आर्थिक सहयोग से प्रकाशित “ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास” नामक बृहद्काय ग्रन्थ का लोकार्पण दि० ११ नवम्बर को अमृतसर में सम्पन्न हुआ । श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, अमृतसर के तत्त्वावधान तथा मुनि मणिभद्र जी म०सा० ठाणा ५ के पावन सान्निध्य में आयोजित इस समारोह में केन्द्रीय मंत्री श्री सत्यनारायणजी जटिया ने ग्रन्थ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर पंजाब ए के शिक्षा राज्यमंत्री श्री दरबारीलाल जी तथा समाज के गणमान्यजन उपस्थित थे। पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ 'स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास' का लोकार्पण करते हुए केन्द्रीय मंत्री श्री सत्यनारायण जटिया, मानव मिलन के प्रेरक मुनिश्री मणिभद्र जी महाराज, श्री सुभाष ओसवाल, श्री मंगतराम जैन (बब्बी), ग्रन्थ के लेखक डा० विजयकुमार एवं अमृतसर व्यापार मण्डल के अध्यक्ष श्री अमृतलाल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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