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________________ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास प्रर्वतक धर्म निर्वतक धर्म १. जैविक मूल्यों की प्रधानता १. आध्यात्मिक मूल्यों की प्रधानता । २. विधायक जीवन-दृष्टि २. निषेधक जीवन-दृष्टि । ३. समष्टिवादी ३. व्यष्टिवादी। ४. व्यवहार में कर्म पर बल फिर भी | ४. व्यवहार में नैष्कर्मण्यता का समर्थन दैविक शक्तियों की कृपा पर विश्वास फिर आत्मकल्याण हेतु वैयक्तिक पुरुषार्थ पर बल! ५. ईश्वरवादी ५. अनीश्वरवादी । ६. ईश्वरीय कृपा पर विश्वास ६. वैयक्तिक प्रयासों पर विश्वास, कर्म सिद्धान्त ___ का समर्थन। ७. साधना के बाह्य साधनों पर बल । ७. आन्तरिक विशुद्धता पर बल । ८. जीवन का लक्ष्य स्वर्ग/ईश्वर के ८. जीवन का मोक्ष एवं निर्वाण की प्राप्ति। सान्निध्य की प्राप्ति ९. वर्ण-व्यवस्था और जातिवाद का | ९. जातिवाद का विरोध, वर्ण-व्यवस्था का जन्मना आधार पर समर्थन | केवल कर्मणा आधार पर समर्थन । १०. गृहस्थ-जीवन की प्रधानता १०. संन्यास जीवन की प्रधानता । ११. सामाजिक जीवन शैली ११. एकाकी जीवन शैली । १२. राजतन्त्र का समर्थन | १२. जनतन्त्र का समर्थन । १३. शक्तिशाली की पूजा १३. सदाचारी की पूजा १४. विधि विधानों एवं कर्मकाण्डों | १४. ध्यान और तप की प्रधानता । . की प्रधानता १५. ब्राह्मण-संस्था (पुरोहित-वर्ग) का १५. श्रमण-संस्था का विकास । विकास १६. उपासनामूलक १६. समाधिमूलक ।
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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