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________________ ९९ १. मूर्तिकला - मूर्तिकला के क्षेत्र में सिन्धु घाटी की मूर्तिकला के बाद तथागत गौतम बुद्ध केन्द्र बिन्दु रहे हैं। वे भारतीय प्रतिमा - विज्ञान के आधार हैं। बौद्ध साहित्य में मूर्ति के लिए 'रूपक' शब्द का प्रयोग किया गया है। पहले भगवान् बुद्ध ने मूर्ति न बनाने का निर्देश अपने शिष्यों को दिया था और इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा था कि "मैं और मेरे द्वारा उपदेशित धर्म एक ही हैं। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। इसलिए जो मेरे धर्म को कहता, सुनता और समझता है, वही मुझे देखता है और जो मुझे देखता है, वही मेरे धर्म को समझता है। " यो मं धम्मं पस्सति सो मं पस्सति । यो मं पस्सति सो धम्मं पस्सति । । इसलिए उस समय बुद्ध की मूर्तियों की कोई आवश्यकता नहीं थी, केवल उनकी पूजा- अर्चना प्रतीकों के माध्यम से होती थी। ये प्रतीक ही बुद्ध रूप थे, जिनमें चैत्य, शारीरिक धातु, स्तूप और महाबोधि ( महाबोधि वृक्ष) मुख्य थे। वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बठानेसु पतिट्ठितं । सारीरिकधातु महाबोधिं बुद्धरूपं सकलं सदा || यह प्रतीकात्मक कला भरहुत और सांची के स्तूपों पर उत्कीर्ण मिलती है। सबसे पहले बुद्ध का प्रतीकों के साथ-साथ मानव रूप में अँकन अमरावती (आन्ध्र प्रदेश) स्तूप में हुआ था । तदन्तर गान्धार, मथुरा, सारनाथ और बोधगया के मूर्तिकला केन्द्रों से बुद्ध तथा बोधिसत्वों की अनेक मुद्राओं में प्रतिमायें निर्मित हुईं। जहाँ एक ओर संसार की सबसे विशाल बुद्ध की मूर्ति बनी ( बामियान, अफगानिस्तान की एक बुद्ध मूर्ति १७३ फीट ऊँची थी, जिसे तालिबान ने नष्ट कर दिया है), वहीं संसार की सर्वोत्कृष्ठ मूर्तियाँ भी बुद्ध की और भारत में ही निर्मित हुईं। उल्लेखनीय है कि संसार की तीन सर्वोत्कृष्ठ मूर्तियों में एक सारनाथ की धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा की मूर्ति है जो सारनाथ संग्रहालय में सुरक्षित है। दूसरी मथुरा संग्रहालय में खड़ी हुई बुद्ध मूर्ति है और तीसरी भारत के राष्ट्रपति भवन में शोभायमान है। भगवान् बुद्ध की मूर्तियाँ जिन विभिन्न आकार प्रकारों में निर्मित हुई हैं, उन्हें मुद्राओं के नाम से अभिहित किया गया है। ये प्रमुख मुद्राएँ इस प्रकार हैं ध्यान मुद्रा - इसमें बुद्ध पद्मासन में बैठे हुए हैं। यह मुद्रा बुद्ध की साधना अवस्था का प्रतीक है। इसे वज्रासन मुद्रा भी कहते हैं । भूमि स्पर्श मुद्रा इस मुद्रा में बैठे हुए बुद्ध का दाहिना हाथ नीचे भूमि को स्पर्श करता हुआ दिखलाया गया है। इस मुद्रा द्वारा दर्शाया गया है कि बुद्ध ने मार पर विजय प्राप्त कर बुद्धत्व प्राप्त कर लिया है जिसकी साक्षी पृथ्वी है। बोधगया के महाबोधि विहार (मन्दिर) की मूर्ति इसी भूमि स्पर्श मुद्रा में है।
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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