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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ९३ पर्यावरण संरक्षण में जैन धर्म के सिद्धांतों का महत्व है। आत्मा के बारे में कहा गया है। "आत्मानं विजानीहि । " अर्थात् आपने आपको व अपनी आत्मा को पहचानो । आत्मा तीन प्रकार की होती है - (१) बाह्य आत्मा (२) अंतरात्मा ( ३ ) परमात्मा । आचारांगसूत्र में कहा है " आयोवादी, लोयवादी, कम्मावादी, किरियावादी।” अर्थात् आत्मा शाश्वत है इस तथ्य को मानने वाला आत्मवादी, लोकवादी कर्मवादी व क्रियावादी है। इसलिए आत्म विश्लेषण करके ही हम आत्मिक पर्यावरण को तुष्ट कर सकते हैं । ज्ञानियों ने अंतरात्मा को "उत्तम", "मध्यम” व " जघन्य" इन तीन भागों में बांटा है। परमात्मा के दो भेद हैं सकल व विकल । सकल परमात्मा में केवली सम्मिलित हैं जबकि विकल परमात्मा में सर्वसिद्ध श्री अरिहंत भगवान् हैं। उक्त तीनों प्रकार के पर्यावरण तथा उनके संरक्षण में जैन धर्म का योगदान रहा है। यदि सभी व्यक्ति कषाय रहित, व्यसन मुक्त जीवन, अनैतिक आचरण को छोड़कर, आत्मिक शक्ति जाग्रत करके शुद्ध संयम का पालन करें तो वे सर्व दुःखों से मुक्ति पा सकते हैं। शुद्ध संयम से तात्पर्य है - अठारह पापों प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, मृषावाद व मिथ्या दर्शन शल्य का त्याग। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यकता है सच्चे श्रावक बनने की। प्राणिमात्र के प्रति दया की भावना रखने की। सबको समान मानने की। इसलिए जीवन के प्रति दया रखने का भाव सभी धर्मों में कहा गया है। जैन धर्म में ८४ लाख जीवों से क्षमा याचना की जाती है और कहा जाता है - खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे। मिती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केण वि।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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