________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : 85 उनके प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति आदि ब्राह्मण थे। शालिभद्र, धन्ना आदि अणगार वैश्य थे। उनका प्रमुख श्रावक आनन्द किसान था। तपस्वी हरिकेशबल चण्डाल कुल में उत्पन्न थे। आज भी दक्षिण भारत में महाराष्ट्र आदि कई राज्यों में कृषिकार, कुंभकार आदि जैन हैं। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में जैन-धर्म की निजी विशेषताएं हैं 1. चिंतन में अनाक्रामक 2. आचरण में सहिष्णु और 3. प्रचार-प्रसार में संयमित काका कालेलकर ने कहा - "जैन-धर्म में विश्वधर्म बनने की क्षमता है। जैन-धर्म महान् है। उसमें आदर्श है - आप्त पुरुष, उसका साधनापथ है - रत्नत्रयी की आराधना और सिद्धांत है - समन्वय प्रधान अनेकान्तवाद।" अन्य दार्शनिक मान्यताएं हैं - सृष्टि शाश्वत है, सुख और दुःख का कर्ता व्यक्ति स्वयं है, प्रत्येक पदार्थ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-युक्त है तथा मनुष्य जाति एक है। जैन-धर्म के मुख्य सिद्धान्त हैं - 1. आत्मा का अस्तित्त्व है। 2. उसका पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म है। 3. वह कर्म का कर्ता है। 4. कृत कर्म का भोक्ता है। 5. बन्धन है और उसके हेतु हैं। 6. मोक्ष है और उसके हेतु हैं। पर्यावरण - संरक्षण : अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक वायुमण्डल में कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा में पचीस प्रतिशत, मीथेन गैस की मात्रा में सौ प्रतिशत और नाइट्रोजन आक्साइड की मात्रा में अठारह प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये गैसें मुख्यत: वातावरण के तापमान में हो रही वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। अंटार्कटिका पर किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि वायुमण्डल की संरचना के समय से लेकर दो सौ वर्ष पूर्व तक वायुमण्डल की स्थिति संतुलित थी। औद्योगिक क्रांति के बाद वायुमण्डल संरचना में विषैली गैसों का अनुपात बढ़ा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org