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जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण :
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इस पूरी चर्चा के बाद प्रश्न उठता है कि जैनों का पर्यावरण संरक्षण में कौन सा योगदान होना चाहिये? धर्म ग्रथों में लिखा हुआ धर्म, धर्म स्थानकों में प्रदर्शित धर्म और ऐसे धार्मिक लोगों का जीवन, इन तीनों में अंतर नहीं होना चाहिये। पर्यावरण की जो क्षति हमसे हो रही है उसमें हमारा उत्तरदायित्त्व क्या होना चहिए? इसे सोचना जरूरी है। धर्म ग्रंथों ने संस्कृति को तहस-नहस करना नहीं सिखाया। जैनधर्म की अष्ट प्रवचनमाताएं हमारा दैनिक जीवन सुधार सकती हैं। ईर्यासमिति एकेन्द्रिय से लेकर पंचेद्रिय तक के जीवों की हिंसा से हमें रोकेंगी। "जयं चरे जयं भासे' का अर्थ मन में सोचें और सोच के अनुसार चलें। षट्काय जीवों की रक्षा करें। भाषासमिति में सावध भाषा का प्रयोग करें। विकथा न करें जो कषायों को बढ़ावा देती हैं। एषणासमिति से भोगवाद का संतुलन करें। शुद्धि-अशुद्धि का विचार रखें। अन्न का दुरुपयोग न होने दें। यश-कीर्ति, मान-सन्मान की आकांक्षा मर्यादित रखें। निक्षेपना - कोई भी वस्तु लेते-देते समय सावधान रहें। उच्चार-प्रस्त्रवरण, कूड़ा-करकट, अनुपयुक्त वस्तु ठीक ढंग से डालें। तंबाकू आदि खाकर यहाँ-वहाँ थूकना भी पर्यावरण बिगाड़ता है। मन कषायों से भ्रमित न हो। वचन हित, मित, मधुर और गंभीर हो। जोर-जोर से चिल्लाकर बोलने से वायुकायिक जीवों की विराधना होती है। काया से श्रमशीलतापूर्वक स्वच्छता से जुड़े रहना चाहिए। महिलायें इसमें अधिक सहयोग दे सकती हैं। अन्न का दुरुपयोग टालना, आवश्यक मात्रा में अन्न पकाना, अन्न पकाते वक्त पोषणयुक्त अन्न पकाना, पानी का अपव्यय टालना, सौर उर्जा का उपयोग करना, थोड़ी सी दूरी पर जाने के लिए स्वयंचलित प्रदूषण फैलानेवाले वाहन का प्रयोग न करना, रेशम जैसा हिंसक वस्त्र न रखना, मुलायम चमड़े की थैली नहीं रखना और रूप-सज्जा के लिये हिंसक प्रसाधन का उपयोग तो उन्हें बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सोना चांदी भी पृथ्वीकाय जीव हैं।
यदि हम समग्र रूप से विचार करें तो वह विचार बुद्धि के उस पार है। उस पार अर्थात् हमें आत्मा के पास जाना होगा। जड़वाद को छोड़कर चैतन्य का अनुगामी बनना होगा। विभाजनवादी प्रवृत्ति को छोड़कर एकीकरण को अपनाना होगा।-द्वेष के स्थान पर प्रेम को बढ़ाना होगा। शोषण को छोड़कर पोषण अपनाना होगा। संघर्ष से समन्वय की ओर बढ़ना होगा। विराधना को छोड़कर आराधना में आना होगा। प्रकाश की ओर ले जाने वाला यह प्रकाशायन है। मृत्यु से अमरत्व की ओर प्रवाहित करने वाला अमृतायन है। प्रदूषण से पर्यावरण संरक्षण सिखलाने वाला निसर्गायन है। संदर्भ सूची
१) समणसुत्तं, गाथा क्र० ६५१. २) वही, गाथा क्र० १४८. ३) वही, गाथा क्र० १४९.
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