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________________ भी स्पष्ट किया गया था। इन लोगों की दृष्टि पर्यावरण प्रदूषण की ओर थी। अत: उन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पर्यावरण की रक्षा की और समाज का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। वे भूमि को ईश्वर का रूप ही मानते थे जो पर्यावरण की रक्षा एवं पूजा का एक अविभाज्य अंग रहा। __ वेदों में वायु की शुद्धि के साथ ही जल प्रदूषण एवं उसके निदान पर भी विशेष बल दिया गया है। ध्वनि प्रदूषण के अंतर्गत वेदों में कहा गया है कि वार्ता करते समय आपस में मधुर एवं धीमे बोलें। खाद्य प्रदूषण के बचाव को भी वेदों ने महत्वपूर्ण स्थान दिया है। मिट्टी एवं वनस्पतियों में प्रदूषण की रोकथाम का वर्णन भी वेदों में मिलता है। वैदिक काल में पर्यावरण संरक्षण को इतना महत्वपूर्ण माना गया है; इससे यह स्पष्ट है कि जैन धर्म जो वैदिक धर्म से भी प्राचीन है, उसमें वर्णित सिद्धान्तों और उपासना पद्धति में जो पर्यावरण संरक्षण और जैविक संतुलन के सिद्धान्तों की स्थापना की गई है वह वर्तमान परिवेश के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। मानव सभ्यता के प्रारंभ में ही भगवान ऋषभदेव ने पर्यावरण संरक्षण बनाये रखने के लिये अनेक सबल सिद्धान्तों की स्थापना की थी। उन्होंने पृथ्वी के छोटे से छोटे प्राणी, वनस्पति एवं सूक्ष्म जीवों की रक्षा के लिये, जो पर्यावरण के लिये आवश्यक हैं, समाज को प्रेरित किया। जैन धर्म में जिन षड्द्रव्यों की अवधारणा है उनका संरक्षण और संवर्द्धन भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण घटक है। जैन धर्म में प्रचलित पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं वनस्पतियों में जीव की अवधारणा से हमें ज्ञात होता है कि वर्तमान युग में मानव ने जिन वस्तुओं को अपने उपभोग के लिये मान लिया है उनमें भी सुख-दुख की अनुभूति होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह सिद्ध हो चुका है। __ ऊपर वैदिक ऋचाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण पर जो प्रकाश डाला गया है वह जैन धर्म की उपासना पद्धति एवं सिद्धान्तों का पर्याय ही प्रतीत होता है; क्योंकि प्रकृति की पूजा प्रारंभ से की जाती रही है और उसी ने पर्यावरण को संतुलित रखने में हमारे महापुरुषों को सहयोग प्रदान किया है। अहिंसा, जो जैन धर्म की मूलभित्ति है, का जितना सूक्ष्म विवेचन जैन परंपरा में मिलता है उतना शायद ही किसी अन्य परंपरा में हो। जैनाचार्यों की अहिंसक दृष्टि भारतीय संस्कृति के लिये गौरव की बात है इसके अनुसार हमारा यह कर्तव्य है कि हम मन से भी किसी के घात की बात न सोचें। अहिंसा का ऐसा उदात्त सिद्धान्त पर्यावरण संरक्षण क्या विश्व शांति का प्रमुख आधार है। जैनत्व आदर्श जीवन का पथ प्रदर्शक है जिसमें धर्म, चित्त की शुद्धता, आत्मिक सुख-शांति और एकांतिक तथा आत्यांतिक चैन की प्राप्ति होती है। अहिंसा परस्पर सहस्तित्व की भावना को बल देती है। यह भावना पर्यावरण संरक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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