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साहित्य सत्कार : १२३
सकती है। विभिन्न जैन विद्वानों ने जैन परम्परा के इतिहास के स्रोत के रूप में इस विधा की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए जैन अभिलेखों के संकलन, सम्पादन
और प्रकाशन के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। इनमें स्व० पूरनचन्द जी नाहर, पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजय, आचार्य बुद्धिसागरसूरि, पं० कामता प्रसाद जैन, डॉ० हीरालाल जैन, मुनि विद्याविजय जी, मुनि जयन्तविजय जी, मुनि कांतिसागर जी, महो० विनयसागर जी, अगरचन्द जी भंवरलाल जी नाहटा, दौलतसिंह लोढ़ा, नन्दलाल जी लोढ़ा, मुनि विशालविजय जी, पं० विजयमूर्ति शास्त्री, श्री विद्याधर जोहरापुरकर, मुनि कंचनसागर आदि का नाम अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। इसी गौरवशाली परम्परा में अगली कड़ी हैं डॉ० कस्तूरचन्द्र जी 'सुमन'।
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ० सुमन ने मध्य प्रदेश के विभिन्न जैन तीर्थों एवं कुछ अन्य स्थानों और वहां के विभिन्न संग्रहालयों से प्राप्त जैन प्रतिमाओं, मंदिरों की दीवालों एवं मानस्तभों पर उत्कीर्ण ३०१ अभिलेखों के मूल पाठ की वाचना, उनका हिन्दी भावार्थ एवं लेख प्राप्ति से सम्बद्ध स्थान या तीर्थ का ससंदर्भ विवरण प्रस्तुत किया है। पुस्तक के अन्त में दो परिशिष्ट भी हैं जिनमें से प्रथम में लेखों के प्राप्ति स्थल का अकारादिक्रम से नाम दिया गया है। द्वितीय परिशिष्ट में लेखों में उल्लिखित विभिन्न जैन ज्ञातियों की तालिका है। वस्तुत: इस पुस्तक में एक ओर मूल अभिलेखों की वाचना और दूसरी ओर उनका सम्यक अध्ययन एवं हिन्दी भावार्थ प्रस्तुत करने के कारण मूल स्रोत और संदर्भ ग्रन्थ - दोनों ही रूपों में इसकी उपयोगिता निर्विवाद है। डॉ० सुमन के इस ग्रन्थ से प्रेरणा लेकर अन्य विद्वान् भी इस क्षेत्र में आगे आयेंगे ऐसा विश्वास है। अच्छे कागज पर निर्दोष रूप से मुद्रित एवं पक्की जिल्द के साथ ही अल्प मूल्य में इसे अध्येताओं के समस्त प्रस्तुत कर प्रकाशक संस्था ने सराहनीय कार्य किया है। यह पुस्तक प्रत्येक ग्रन्थालयों एवं जैन इतिहास के अध्येताओं के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय और पठनीय है।
भारतीय श्रमण संघ गौरव आचार्य सोहन - लेखक - पंडितरत्न, प्रवर्तक स्व० शुक्लचन्द जी म.सा०; संपा० - मुनिश्री सुमनकुमार जी; म० सा० 'श्रमण' (प्रवर्तक - उत्तर भारत); आकार - डिमाई, द्वितीय संस्करण २००२ ईस्वी; प्रकाशक - आचार्य सोहनलाल ज्ञान भंडार, श्री महावीर जैन भवन, महावीर मार्ग, बाजार बस्तीराम, अम्बाला शहर (हरियाणा); पृष्ठ १६+३९७; मूल्य - पठनपाठन/सदुपयोग।
विश्व के सभी धर्म-सम्प्रदायों में समय-समय पर अनेक महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ है। निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय की एक शाखा - स्थानकवासी परम्परा में विक्रम सम्वत् की २०वीं शती में हुए आचार्य सोहनलाल जी म.सा०
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