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________________ विद्यापीठ के प्रांगण में : १०७ संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के पद से बोलते हुए प्रो० अंगनेलाल ने कहा कि आज के इस भौतिकवादी युग में सभी लोग रोजी-रोटी का प्रबन्ध करते हैं। भगवान् महावीर एवं गौतम बुद्ध ने भी सामान्यजनों की आर्थिक समृद्धि के लिए अपने उपदेश दिये जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि भगवान् महावीर के पंचमहाव्रतों में अस्तेय और अपरिग्रह इसी से सम्बन्धित हैं एवं भगवान् बुद्ध ने भी सारनाथ में दिये गये अपने प्रथम धर्मोपदेश में बहजन हिताय बहुजन सुखाय का उपदेश दिया था। जन सामान्य को ध्यान में रखते हुए दोनों महापुरुषों ने लोक भाषा में ही अपना उपदेश दिया और अपने शिष्यों को भी लोकभाषा के प्रयोग का ही निर्देश दिया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सचिव एवं पूर्व निदेशक प्रो० सागरमल जैन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति को पूर्णरूप से जानने के लिये जैन, बौद्ध एवं वैदिक परम्परा के ग्रन्थों का पारस्परिक अध्ययन आवश्यक है। एकांगी अध्ययन भारतीय संस्कृति की आत्मा को नहीं छू सकती। जैन अंग आगमों को समझने के लिये बौद्ध त्रिपिटक का अध्ययन आवश्यक है तथा इन दोनों को समझने के लिये उपनिषदों का ज्ञान अपरिहार्य है। उन्होंने आगे कहा कि व्यक्ति की दृष्टि समग्र एवं निरपेक्ष होनी चहिए तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तथ्यों को परखना होगा तभी श्रमण परस्पस के मूल तत्त्व को समझा जा सकता है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद ने पिछले तीन दिनों तक चले विचार मंथन का सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हुए संगोष्ठी में श्रमण परम्परा के विभिन्न पक्षों पर नौ सत्रों में पढ़े गये शोध पत्रों की उपलब्धियाँ को रेखांकित किया और बतलाया कि इससे शोध की इतनी नई सम्भवनायें खुली हैं कि निकट भविष्य में पुनः इसी विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी की आवश्यकता होगी। प्रतिभागियों में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के प्रो० एल०पी० सिंह ने संगोष्ठी के आयोजकों को एक सफल संगोष्ठी के आयोजन के लिये धन्यवाद दिया और युवा प्रतिभाओं की सक्रिय सहभागिता की प्रशंसा की। बीकानेर के प्रमुख उद्यमी श्री किशनचन्द जी बोथरा ने कहा कि इस सारगर्भित विषय पर इतने विद्वानों को एक साथ बुला कर एक सफल संगोष्ठी के लिये पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रशंसा के पात्र हैं। उन्होंने आगे भी ऐसे संगोष्ठियों के आयोजनों का आह्वान किया। अन्त में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने आगन्तुक अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। विद्वदजनों की सेवा में शीघ्र ही महावीर के २६००वें जन्म कल्याणक महोत्सव के अवसर पर इस संगोष्ठी में पढ़े गये शोध आलेखों को पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करने की योजना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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