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विद्यापीठ के प्रांगण में
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महावीर एवं गौतम बुद्ध पर्यन्त श्रमण परम्परा विषयक
राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी एवं उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्त्वावधान में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभागार में दि० २६२८ अप्रैल २००३ को महावीर एवं गौतम बुद्ध पर्यन्त श्रमण परम्परा विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दि० २६ अप्रैल को संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ संस्थान में अध्ययनार्थ विराजित खरतरगच्छीय मुनि महेन्द्र सागर जी एवं मुनि मनीष सागर जी के मंगलाचरण से हुआ। इस अवसर पर कु० इन्दु जैन ने सरस्वती वन्दना की भावपूर्ण प्रस्तुति की। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विख्यात साहित्य समीक्षक प्रो० राममूर्ति त्रिपाठी ने की। इस अवसर पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो० सुरेन्द्र सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो० अंगनेलाल - पूर्व कुलपति - डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय; सुप्रसिद्ध कला मर्मज्ञ प्रो० आर०सी० शर्मा, पूर्व निदेशक - राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली एवं आचार्य - ज्ञान प्रवाह - वाराणसी; प्रो० सागरमल जैन, मंत्री - पार्श्वनाथ विद्यापीठ आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने किया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद जी ने संस्थान का परिचय देते हुए संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन कर आगन्तुक अतिथियों का स्वागत किया। तत्पश्चात् डॉ० योगेन्द्र सिंह ने उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ का परिचय देते हुए अपनी संस्था की ओर से संगोष्ठी में आगन्तुक विद्वानों का स्वागत किया। प्रो० सागरमल जैन ने संगोष्ठी का मुख्य आलेख प्रस्तुत करते हुए बतलाया कि भारतीय संस्कृति एक समन्वित संस्कृति है। इसकी संरचना में वैदिक धारा और श्रमण धारा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वैदिक धारा का प्रतिनिधित्व वर्तमान में हिन्दू धर्म कर रहा है और श्रमण धारा का जैन एवं बौद्ध धर्म। दोनों ही संस्कृतियों का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ा है। आज हिन्दू धर्म न तो शुद्धरूप से वैदिक परम्परा का अनुयायी है और न ही जैन और बौद्ध धर्म विशुद्ध रूप से श्रमण परम्परा का। दोनों ही परम्पराओं ने एक दूसरे से बहुत कुछ ग्रहण किया है। आज चाहे हिन्दू धर्म हो अथवा जैन और बौद्ध धर्म हो, ये सभी अपने
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