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६० : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३
इसी शाखा में हुए मुनि साधुकीर्ति ने वि०सं०१६१८/ई०स० १५६३ में सत्तरभेदीपूजा नामक कृति की रचना की। इनके द्वारा रचित कुछ अन्य कतियां भी मिलती हैं जो निम्नानुसार हैंसंघपट्टकटीका
रचनाकाल वि०सं० १६१६ आषाढ़भूतिप्रबन्धरास रचनाकाल वि०सं० १६२४ मौनएकादशीस्तोत्र रचनाकाल वि०सं० १६२४ गुरुमहत्तागीत
रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती वाग्भटालंकारटीका रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती विशेषनाममाला
रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती चतुर्दशस्वप्न
रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती कर्मग्रन्थस्तवक
रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती कर्मग्रन्थचतुष्टयस्तवक रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती जीवविचारप्रकरणबालावबोध रचनाकाल वि०सं० १७वीं शती कायस्थितिप्रकरणबालावबोध रचनाकाल वि०सं० १६२३
मौनएकादशीस्तोत्र की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: मतिवर्धन →मेरुतिलक→दयाकलश-→अमरमाणिक्य →साधुकीर्ति (रचनाकार)
इस प्रकार अमरमाणिक्य के दो शिष्यों साधुकीर्ति और कनकसोम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
दसविधियतिधर्मगीत (रचनाकाल वि०सं०१६६४) के रचनाकार कनकप्रभसरि तथा वि०सं०१६६८/ई०स०१६१२ में रचित होलिकागीत के रचयिता रंगकुशल" उपरकथित अमरमणिक्य के शिष्य कनकसोम के शिष्य थे।
रंगकुशल द्वारा रचित अमरसेनवयरसेनसंधि (रचनाकाल वि०सं० १६४४), महावीरसत्ताइसभवस्तवन (वि०सं०१६७०); अन्तरंगफाग, स्थूलिभद्ररास आदि कृतियां भी मिलती हैं।
__अमरमाणिक्य के दूसरे शिष्य साधुकीर्ति के पट्टधर साधुसुन्दर हुए जिनके द्वारा रचित युक्तिरत्नाकर, धातुरत्नाकर (रचनाकाल वि०सं०१६८० कार्तिक वदि १५), शब्दरत्नाकर शब्दभेदनाममाला, पावस्तुति आदि कृतियां मिलती हैं। अमरमाणिक्य के दूसरे शिष्य साधुवर्धन नामक रचनाकार हुए हैं जिनके द्वारा रचित हितोपदेशस्वाध्याय, अट्ठाइसलब्धिस्तवन (वि०सं०१६२६) आदि विभिन्न छोटी-बड़ी कृतियां प्राप्त होती हैं।
अट्ठाइसलब्धिस्तवन की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है, जो इस प्रकार है:
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