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सम्पादकीय
श्रमण जनवरी-मार्च २००३ का अंक पाठकों के समक्ष उपस्थित है। हमारा संकल्प है कि श्रमण की पहचान एक प्रामाणिक शोधपत्रिका के रूप में हो अतः हमारा यही प्रयास रहता है कि हम इसमें अच्छे आलेख प्रकाशित करें। हम अपने इस उद्देश्य में कहाँ तक सफल हुए अथवा हो रहे हैं, यह पाठक स्वयं देखें और हमें इसमें हो रही त्रुटियों से अवश्य अवगत कराने की कृपा करें, ऐसी प्रार्थना है।
सम्माननीय लेखकों से भी निवेदन है कि वे हमें जैन धर्म-दर्शन, इतिहास, पुरातत्त्व, कला एवं भाषा-साहित्य सम्बन्धी अपने अप्रकाशित शोध आलेख प्रकाशनार्थ प्रेषित करें।
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सम्पादक
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