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________________ जैन पुराणों में वर्णित जैन संस्कारों का जैनेतर संस्कारों से तुलनात्मक अध्ययन : २५ सामाजिक व धार्मिक शक्तियों के समाज में क्रियाशील होने से संस्कार बोधगम्य नहीं रहे, जनसाधारण की अरुचि और उदासीनता से उक्त संस्कार आज ह्रासोन्मुख हैं। आज समाज परिवर्तित हो चुका है, उसी के अनुरूप मानव के विचारों, भावों, महत्त्वाकांक्षाओं आदि में भी परिवर्तन हो चुके हैं। नवीन विचारधारा के अनुरूप परिवर्तित हुए बिना संस्कार आज जनमानस को अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर सकते। लेकिन जीवन एक कला है तथा इसके सुधार के लिए सुनियोजित प्रयत्न आवश्यक है, यह एक अनिवार्य तथा शाश्वत सत्य है। सन्दर्भ : १. हिन्दू संस्कार; राजबली पाण्डेय, वाराणसी, १९६६ ईस्वी, पृ० १८. २. आक्सफोर्ड डिक्शनरी; Sacrament शब्द. ३. आदिपुराण; आचार्य जिनसेन, सम्पा०- पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, काशी, ३९/२५. जैमिनीसूत्र; ३/१/३, पी०वी०काणे, हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र; भाग-२, पूना १९६२ ईस्वी, पृ० १९०. हिन्दू संस्कार; पृ० १७-१८. तन्त्रवार्तिक; कुमारिल भट्ट, पृ० १०७८. ६. वेदान्तसूत्रः शङ्करभाष्य, पृ० ११४. आ० पु०; ३९/२५. ८. आदिपुराण में प्रतिपादित भारत; नेमिचन्द शास्त्री, श्री गणेश प्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, वाराणसी १९६८ ईस्वी, पृ० १६५. ९. आदिपुराण, ३९/११९-१२२. १०. वही, ३९/२०८-२११. ११. वही, ३८/५१-५३. १२. गौतम धर्मसूत्र; १/८२२. १३. हिन्दू संस्कार; पृ० १९-२६, काणे, पूर्वोक्त, पृ० ११३-९४. १४. आधुनिक यूरोप का इतिहास; हीरालाल सिंह, रामवृक्ष सिंह, नन्दकिशोर एण्ड ब्रदर्स, वाराणसी १९५५ ईस्वी. १५. बौधायन गृह्यसूत्र; १४/६/१, याज्ञवल्क्य स्मृति; १/११, अथर्ववेद; ५/२५/३, बृहदारण्यक उपनिषदः ६/४/२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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