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________________ जैन पुराणों में वर्णित जैन संस्कारों का जैनेतर संस्कारों से तुलनात्मक अध्ययन डॉ॰ विजयकुमार झा संस्कार शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की कृञ् धातु में सम् पूर्वक घञ् प्रत्यय के योग से हुआ है। सम् +कृ+घञ् = संस्कार। इसका अर्थ संस्करण, परिमार्जन, शुद्धि, परिष्कार अथवा स्वच्छता है। इसका प्रयोग भारतीय इतिहास, धर्म और साहित्य में अनेक अर्थों में हुआ है। " संस्कार शब्द के तात्पर्य से न्यूनाधिक सीमा तक समता रखने वाला अंग्रेजी का सेक्रामेण्ट (Sacrament) शब्द है जिसका अर्थ है - धार्मिक विधि-विधान अथवा कृत्य जो आन्तरिक तथा आत्मिक सौन्दर्य का ब्राह्म तथा दृश्य प्रतीक माना जाता है। इसका प्रयोग रोमन कैथॉलिक चर्च द्वारा सप्तक्रियाओं के लिए होता है। किसी वचन अथवा प्रतिमा पुष्टि, रहस्यपूर्ण महत्त्व की वस्तु, पवित्र प्रभाव तथा प्रतीक भी सेक्रामेण्ट शब्द का अर्थ है ।" जैन पुराणों में संस्कार के लिए क्रिया शब्द का व्यवहार हुआ है। मानव जन्म से असंस्कृत होता है, किन्तु संस्कारों की अनुपालना से उसका भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जीवन निखर उठता है और सामाजिक-धार्मिक जीवन उन्नत होता है। संस्कार वह है जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य हो जाता है। * शुचिता - सन्निवेश, मनःपरिष्करण, धर्मार्थ समाचरण, शुद्धि, सन्निधान एवं क्रियागत विधान संस्कार के प्रमुख लक्षण हैं। व्यक्ति के अभीष्ट की प्राप्ति तथा प्रयोजन की सिद्धि संस्कारों के माध्यम से होती है। संस्कारों को सम्पन्न किये बिना मानव जीवन अपवित्र, अपूर्ण और अव्यवस्थित था। अप्रत्यक्ष रूप से जो बाधाएँ लगी होती हैं, उन्हें दूर करना तथा आगे के लिए जीवन को निर्विघ्न करना संस्कारों का प्रधान उद्देश्य है। व्यक्ति के जीवन को योग्य', गुणाढ्य,' परिष्कृत् और व्यवस्थित रूप प्रदान करने में संस्कारों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भौतिक या लौकिक समृद्धि तथा वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी संस्कारों को सम्पन्न किया जाता है। संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति सामाजिक प्रतिमानों, मूल्यों, आदर्शों आदि का ज्ञान प्राप्त करता है जिससे नैतिक उत्थान होता है और वह जागरूक डी०बी० ० एन० छात्रावास, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर (राज ० ), पिन- ३०२००४. *. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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