________________
विद्यापीठ के प्रांगण में : ११५
किया। १२ दिन पार्श्वनाथ जन्मभूमि मन्दिर, वाराणसी में प्रवास करने के उपरान्त साध्वियों ने दिनांक १९ मार्च को इलाहाबाद के लिये प्रस्थान किया। ज्ञातव्य है कि आर्या ॐकार श्रीजी ठाणा १० का अगला चातुर्मास कानपुर में होना निश्चित हुआ है।
विश्व संस्कृत प्रतिष्ठानम् द्वारा आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी सम्पन्न
वाराणसी १० मार्च; पार्श्वनाथ विद्यापीठ के भव्य सभागार में विश्व संस्कृत प्रतिष्ठानम् द्वारा त्रिदिवसीय (मार्च ७-९, २००३) अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ज्ञातव्य है कि महान् विद्याप्रेमी, पूर्व काशिराज स्व० डॉ० विभूतिनारायण सिंह द्वारा संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार एवं उच्चस्तरीय अध्ययन/संशोधन हेतु स्थापित इस संस्था का केन्द्रीय कार्यालय दुर्ग, रामनगर, वाराणसी में है। काशी की महाराजकुमारी कृष्णप्रिया इसकी अध्यक्षा तथा मुम्बई निवासी पण्डित गुलाम दस्तगीर विराज़दार इसके महामन्त्री हैं। इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न भागों से पधारे ६० विद्वानों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। प्रो० राजाराम मेहरोत्रा संगोष्ठी के प्रारम्भिक सत्र के अध्यक्ष थे। समापन सत्र में न्यायमूर्ति श्री मार्कण्डेय काटजू ने न्याय प्रणाली में मीमांसा दर्शन के सिद्धान्तों की उपयोगिता बतलाकर श्रोताओं को चकित कर दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रो० अमरनाथ पाण्डेय, प्रो० कृष्ण बहादुर एवं प्रो० महेश्वरी प्रसाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। संस्था ने सभी आगन्तुक अतिथियों के भोजन एवं आवास की सुन्दर व्यवस्था पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिसर में की थी।
कनाडा का शोधछात्र विद्यापीठ में ज्योर्तिलिंगों पर शोधकार्य कर रहे कनाडा निवासी श्री वेंजामिक फ्लेमिग अपने भारत प्रवास में दिनांक २१ मार्च को विद्यापीठ पधारे। यहाँ वे एक सप्ताह पर्यन्त रुके। इस अवधि में उन्होंने यहाँ के पुस्तकालय का पूर्ण उपयोग किया।
प्रो० वी० एस० पाठक विद्यापीठ में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के विश्वविख्यात् विद्वान् और गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो० वी० एस० पाठक दिनांक २२ मार्च को विद्यापीठ पधारे। अपने दो दिन के प्रवास में प्रो० पाठक ने यहाँ हो रहे शोधकार्यों की जानकारी प्राप्त की और शोधछात्रों एवं अध्यापकों को अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। उन्होंने यहाँ के पुस्तकालय का भी सूक्ष्मता से निरीक्षण किया और इसकी समृद्धि एवं सुव्यवस्था पर सन्तोष व्यक्त किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org