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________________ खरतरगच्छ-रुद्रपल्लीयशाखा का इतिहास : ८९ तालिका क्रमांक-३ हर्षसुन्दरसूरि (वि.सं. १४७८-१४८६) देवसुन्दरसूरि (वि.सं. १४५४-१४८७) लब्धिसुन्दरसूरि (वि.सं. १५०६) विवेकसुन्दरसूरि सोमसुन्दरसूरि (वि.सं. १५०१-१५२५) हरिकलश (वि.सं. १५४२) हेमरत्नसूरि सोमरत्नसूरि गुणरत्नसूरि लक्ष्मीरत्न (विमलवसही के वि.सं. १५९७ के लेख में उल्लिखित) तृतीय वर्ग में उन लेखों को रखा जा सकता है जिनमें प्रतिमाप्रतिष्ठापक मुनि एवं गच्छ का तो नाम है; किन्तु उनके गुरु का नहीं। इनका विवरण इस प्रकार हैवि.सं. प्रतिष्ठापक मुनि का नाम . १५१० हरिभद्रसूरि१९ १५२५, १५४५ हेमप्रभसूरि२० १५५६ हर्षसुन्दरसूरि२१ १५५६ सर्वसुन्दरसूरि२२ जिनपंजरस्तोत्र२३ के रचयिता कमलप्रभसूरि भी इसी शाखा के थे। उनके गुरु का नाम देवप्रभसूरि था। यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है; किन्तु यह कृति कब रची गयी,रचनाकार के गुरु देवप्रभसूरि किसके शिष्य थे? इसी प्रकार वि.सं. १६५५ में करणराज२४ नामक ज्योतिष ग्रन्थ के रचनाकार मुनिसुन्दर भी खरतरगच्छ की इसी शाखा के थे। उनके गुरु का नाम जिनसुन्दरसूरि था। किन्तु ये जिनसुन्दरसूरि किसके शिष्य थे इस सम्बन्ध में न तो उक्त प्रशस्ति से और न ही किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार ये प्रश्न अभी तो अनुत्तरित ही रह जाते हैं। रुद्रपल्लीयशाखा से सम्बद्ध और अद्यावधि उपलब्ध अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की कोई विस्तृत तालिका को संगठित कर पाना कठिन है, फिर भी इनसे यह स्पष्ट होता है कि श्वेताम्बर जैन समाज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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