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________________ ४ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ जन्म- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, भवभावना, नेमिनाहचरिय तथा कल्पसूत्र की टीकाओं में भगवान् अरिष्टनेमि के नौ भवों का वर्णन मिलता है। हरिवंशपुराण एवं उत्तरपुराण आदि दिगम्बर-ग्रन्थों में पाँच भवों का उल्लेख है। अरिष्टनेमि के जीव ने सर्वप्रथम धनुकुमार के भव में सम्यक् दर्शन प्राप्त किया था। राजीमती के जीव के साथ भी उनका उसी समय से स्नेह सम्बन्ध चला आ रहा था। श्वेताम्बर, दिगम्बर सभी ग्रन्थों के अनुसार अन्तिम भव में भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म शौरीपुर में हुआ।२१ यह कुशावर्त जनपद की राजधानी थी। जैन-ग्रन्थों के उल्लेखानुसार राजा शौरि ने अपने लघु भ्राता सुवीर को मथुरा का राज्य देकर कुशावर्त में शौरिपुर नगर बसाया था।२३ सूत्रकृताङ्ग में अनेक नगरों के साथ शौरिपुर का भी उल्लेख हुआ है। वर्तमान में इसकी पहचान आगरा जिले में यमुना नदी के किनारे बटेश्वर के पास आये हुए सूर्यपुर या सूरजपुर से की जाती है।२४ भगवान् अरिष्टनेमि ने जिस समय शौरीपुर में जन्म लिया था उस समय वहाँ द्वैराज्य था।२५ एक ओर वृष्णिकुल के प्रमुख वसुदेव राज्य करते थे। जिनकी दो रानियाँ- रोहिणी और देवकी से क्रमश: बलराम और कृष्ण दो पुत्र थे तो दूसरी ओर अन्धककुल के प्रधान समुद्रविजय राज्य करते थे जिनकी पटरानी का नाम शिवा था। इन्हीं समुद्रविजय और शिवा के पुत्र रूप में भगवान् अरिष्टनेमि का जीव अपराजित महाविमान में बत्तीस सागरोपम का आयुष्य भोग कर वर्षा ऋतु के चतुर्थ मास अर्थात् कार्तिक मास की कृष्णत्रयोदशी को माता शिवादेवी की कुक्षि में आया।२६ आचार्य जिनसेन और गुणभद्र का मन्तव्य है कि कार्तिक शुक्ला षष्ठी के दिन भगवान् स्वर्ग से च्युत होकर गर्भ में आए। वर्षा ऋतु के प्रथम मास श्रावण शुक्ला पञ्चमी को ९ माह पूर्ण होने पर चित्रा नक्षत्र के योग में भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ।२७ दिगम्बर-परम्परा के समर्थ आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म माना है। अरिष्टनेमि का वंश हरिवंश एवं गोत्र गौतम२८ और कुल वृष्णि था।२९ अन्धक और वृष्णि दो भाई थे। वृष्णि अरिष्टनेमि के दादा थे जिनसे वृष्णि कुल का प्रवर्तन हुआ। वृष्णि कुल में प्रधान होने के कारण अरिष्टनेमि को वृष्णिपुङ्गव भी कहा गया है।३° उत्तराध्ययन और दशवैकालिक में उनके कुल के रूप में अन्धकवृष्णि का ही उल्लेख मिलता है जिनके तीन और भाई थे--- रथनेमि, सत्यनेमि और दृढ़नेमि। अन्तकृद्दशाङ्गवृत्ति में अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय के वसुदेव सहित १० भाइयों (दशाह) का उल्लेख है।३१ कृष्ण अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। ब्राह्मण-परम्परा के ग्रन्थों एवं जैन-ग्रन्थों में भगवान् अरिष्टनेमि का वंश-परिचय इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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