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________________ अर्बुद मण्डल में जैनधर्म : ५९ की, जो बाद में स्थानकवासी-परम्परा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसकी पुष्टि में एक प्राचीन दोहा मिला है लोकाशाही जनमिया सिरोही धरणा। संता शूरां बरणिया भौसागर तरणा।। लोकागच्छ का प्रथम उपाश्रय सिरोही में स्थापित हुआ। इस क्षेत्र के शासकों में जैनों के प्रति बहुत सद्भाव रहा है इसलिए पूरे इलाके में रावलों के पास ही जैन मन्दिर बने हुए हैं और इन शासकों ने मन्दिरों के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए ग्राम, भूमि, अरट अथवा उपज का भाग उन्हें अर्पित किया था। ऐसे दानपत्र अथवा शिलालेख आज भी इतिहास की धरोहर हैं। जैन मन्दिरों को दान का सबसे पुराना उपलब्ध शिलालेख झाडोली की बावड़ी का है, जो इस प्रकार है संवत् १२४२ वर्ष फाल्गुन वदि १ महारान श्री केल्हणदेवराज्ये मण्डलिक श्री धारावर्ष पट्टराणी शृङ्गार देवी दत्त: राजल लूंढार्पित। संवत् १२८७ के आबू के लूणवसही मन्दिर के शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि चन्द्रावती के परमार राजा सोमदेव और उसके पुत्र कान्हड़देव ने लुणवसही मन्दिर के निभाव के लिए डबाणी' गाँव सदा के लिए अर्पण किया था। संवत् १३४५ के दंताणी गांव के शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि गांव के ठाकुर प्रतापसिंह और हेमदेव ने यहाँ के मन्दिर के लिए दो खेतों का दान दिया था। इसी तरह महीपाल के पुत्र सुहडसिंह ने तीर्थङ्करदेव की यात्रा करके चार सौ द्रव्य की भेंट की थी। संवत् १३९१ के दियाणा गांव के शिलालेख से ज्ञात होता है कि वहाँ के ठाकुर तेजसिंह ने दियाणा मन्दिर को एक बावडी भेंट की थी। ऐसे कई उदाहरण अर्बुदाचल प्रदक्षिणा के जैन लेखों से ज्ञात होते हैं। सिरोही के महाराव सहसमल ने सन् १४२५ में सिरोही की स्थापना की थी, क्योंकि अर्बुद मण्डल की राजधानी चन्द्रावती मुगल आक्रमणों से ध्वस्त हो गयी थी। सिरोही की स्थापना से पूर्व उन्होंने कुमारावस्था में महाराव शोभाजी के शासनकाल में सन् १४१८ में थूभ की वाड़ी भगवान आदिनाथ की सेवा-पूजा के लिए अर्पित की थी एवं उसके पश्चात् सिरोही दुर्ग का निर्माण कराया। शिलालेख की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं___महाराजाधिराज देवडा शोभाकेन, राजश्री सहसमलसहितेन सिरोही स्थाने देव श्री अदिनाथ पूजार्थ अरघट्टप्रदत्त:पालनीय। बहुभिर्वसुधा भुक्ता यस्य यस्य यदा भूमिः तस्य स्यात् तत्फलम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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