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________________ ३० : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। __ इसी के अन्तर्गत 'नन्द की उलझन' कथा का आरम्भ विलास से और अन्त त्याग से होता है। आदि से अन्त तक कार्य-व्यापारों का तनाव है। नन्द साधु हो जाने पर भी अपनी पत्नी सुन्दरी का ही ध्यान किया करता है। रोमान्स उसके जीवन में घुला-मिला है। नन्द का भाई अपने कई चमत्कारपूर्ण कार्यों के द्वारा नन्द को सुन्दरी से विरक्त करता है।३५ यहाँ आर्य महागिरि तथा आर्य सहस्ति के आख्यान भी दिये गये हैं।३६ -गजायपुर तीर्थ में महागिरि ने पादोपगमन धारण कर मृत्यु प्राप्त की थी। गोविन्द वाचक के दृष्टान्त में कहा है कि ये बौद्ध धर्मानुयायी महावादी थे और श्रीगुप्तसूरि से शास्त्रार्थ में पराजित होने पर जैनधर्म में दीक्षित हुए थे।३७ धर्मबीज की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जैन शासन में श्रद्धा प्रधान दया-दान आदि अनवद्य भाव ही धर्मबीज है।३८ स्थविरकल्प में करणीय कार्य,३९ वैयावृत्त का स्वरूप सम्यग्दर्शन की निर्मलता आदि विषयों का अच्छा प्रतिपादन है।४० आगे आध्यात्म की प्रधानता के विषय में कहा है कि यही मूलबद्ध अनुष्ठान है। इसके विपरीत सब कुछ शरीर में लगे हुए मैल की तरह असार है। जैनेतर शास्त्रों में भी आध्यात्म की प्रधानता वर्णित है। १ ।। चैत्यद्रव्य के उपयोग की विविध प्रकार से निन्दा करते हुए इससे सम्बन्धित संकाश श्रावक का आख्यान दिया है जो कि अनेक जन्म-जन्मान्तरों तक दुःख भोगता है। उपदेशपद में देवद्रव्य का स्वरूप तथा उसके रक्षण के फल का अच्छा प्रतिपादन है। २ सम्यग्ज्ञान का स्वरूप और फल, अभिग्रह, कर्मबन्ध के हेतु, गुणस्थान, अणुव्रत, महाव्रत, पञ्चसमिति, त्रिगुप्ति, गुरुकुलवास से ज्ञानादि गुणों की प्राप्ति, स्वाध्याय, यत्नाचार, उत्सर्ग-अपवाद लक्षण से सभी नयों द्वारा अभिमत तात्त्वित स्वरूप, दुषमाकाल में चरित्र की स्थिति आदि विषयों का प्रतिपादन विभिन्न आख्यानों द्वारा विस्तृत रूप में किया गया है। धर्माचरण का निरतिचार पालन करने से श्रेय पद की प्राप्ति होती है। इस सम्बन्ध में आचार्य हरिभद्र ने शङ्क-कलावती का बड़ा आख्यान दिया है। टीकाकार ने इस आख्यान का ४५१ आर्या छन्दों में विस्तार किया है।४३ इसी प्रसंग में शक्कर और आटे से भरे हए बर्तन के उलट जाने, खांड मिश्रित सत्तू और घी की कुण्डी उलट जाने एवं उफान से निकले हुए दूध के हाथ पर गिर जाने से किसी सज्जन पुरुष के कुटुम्ब की दयनीय स्थिति का वृत्तिकार ने बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। धर्म, सुख, पाण्डित्य आदि का प्रश्नोत्तर रूप में स्वरूप प्रतिपादित करते हुए कहा है कि- धर्म क्या है? उत्तर- जीव दया। सुख क्या है? - उत्तर- आरोग्य। स्नेह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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