SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्य-सत्कार : १७५ के लिए 'महापुरुष' कहलाता है। 'महापुरुष' तो वह तब भी था लेकिन मानव अपनी तुच्छ बुद्धि के कारण उसे पहचान नहीं पाती है। समाज में बढ़ती हुई कुप्रवृत्तियों जैसे- विषय-वासना की लालसा और लिप्सा में मानव अनाचार, दुराचार, बलात्कार, व्यभिचार, पापाचार और धर्मान्धता में इतना मशगूल हो गया है जिससे कि समाज, धर्म और व्यक्ति का नैतिक मूल्य गिरता जा रहा है। इसी को देखते हुए जैन मुनि पदममुनि ‘अमन' ने अपने विचारों का संकलन करके समाज को एक सूत्र दिया- वह है- 'गन्तव्य की ओर'। इस सूत्र का अर्थ ही है कि परम आनन्द, परम मोक्ष, परम ब्रह्म को प्राप्त करना। जिस प्रकार सारी नदियाँ उमड़ती-फाँदती हुई अपने गन्तव्य स्थान समुद्र में जाकर एकाकार हो जाती हैं। उसी प्रकार विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का लक्ष्य परम मोक्ष प्राप्त करना होता है। मुनिजी का स्वभाव व व्यवहार एकदम सरल है। वे किसी धर्म से बँधकर बातें नहीं करते हैं, बल्कि स्वतन्त्र विचार प्रवाह करते हैं। मुनिश्री का यह प्रवचन संग्रह तीन खण्डों में विभक्त है (१) अनुचिन्तन- इसमें णमोकार मन्त्र, तीर्थङ्कर, गन्तव्य की ओर, जैनधर्म की आस्तिकता, पुद्गल, बन्धन और मोक्ष, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद इत्यादि की चर्चा है। (२) अनुगमन- इस खण्ड में धर्म का पालन करने के लिए क्या आवश्यक है? जैसे- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह को जानना तथा धर्म का स्वरूप और अन्त में भगवान् महावीर की अमृत वाणी की चर्चा है। इस प्रकार हम मुनिश्री के द्वितीय खण्ड 'अनुगमन' की तुलना पातञ्जल दर्शन के अष्टाङ्गयोग से कर सकते हैं। जिस प्रकार योगसिद्धि के लिए पाँच बहिरङ्ग व तीन अन्तरङ्ग होते हैं उसी प्रकार धर्म को जानने या पालन करने के लिए- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह को व्यवहार में उतारने के बाद ही धर्म को समझ कर उसका पालन कर सकते हैं। (३) अनुष्ठान- तीसरा और अन्तिम खण्ड के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें जैनधर्म का पालन करने के लिए क्या-क्या अनुष्ठान, व्रत एवं त्यौहार का पालन करना चाहिए, इसका विवेचन है। पदममुनिजी की पुस्तक के इन तीनों खण्डों की तुलना हम जैन-दर्शन के मोक्ष-साधन (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र) जिसे 'त्रिरत्न' कहा गया है, से कर सकते हैं। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:। - तत्त्वार्थसूत्र, १/१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy