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________________ साहित्य-सत्कार : १७३ फिर महावीर चाहिए : लेखक- मुनिश्री चन्द्रप्रभ; प्रकाशक- पूर्वोक्त; प्रथम संस्करण २००१; आकार- डिमाई; पृष्ठ ७५; मूल्य- १५/- रुपया । " फिर महावीर चाहिए" मुनिश्री चन्द्रप्रभ द्वारा १९९८ ईस्वी में नागौर में दिये गये प्रवचनों का संकलन है। इसमें कुल छः प्रवचन हैं। आज विश्व स्वार्थ, हिंसा और दुराग्रहों से गुजर रहा है ऐसे में महावीर उसके लिए एकमात्र समाधान हो सकते हैं। मुनि श्री चन्द्रप्रभ जी ने अपने प्रवचनों में यथास्थान उचित दृष्टान्त उद्धृत कर महावीर के मार्गों पर चलने का सन्देश दिया है। महावीर ने प्राणिमात्र के लिए प्रेम - मैत्री एवं करुणा का सन्देश दिया, जो आज काफी प्रासंगिक हो चुका है। जहाँ विश्व में एक दूसरे के प्रति हिंसा, छल-प्रपञ्च, भ्रष्टाचार हावी होता जा रहा है, महावीर का उपदेश हमें सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । 'अहिंसा' हमें सन्देश देता है कि हम 'गोरी' के जबाब में 'अग्नि' तो तैयार कर सकते हैं; किन्तु अहिंसा से बढ़कर दूसरा शस्त्र नहीं तैयार कर सकते। एक दूसरे के प्रति प्रेम एक अमोघ अस्त्र है जो अकाट्य है। यह हमें महावीर के सन्देशों में ही दृष्टिगत हो सकता है। राघवेन्द्र पाण्डेय (शोधछात्र) उड़िए पंख पसार : लेखक- मुनि श्री चन्द्रप्रभ; प्रकाशक- पूर्वोक्त; प्रथम संस्करण २००१; आकार- डिमाई; पृष्ठ- १९४; मूल्य- ३०/- रुपया । 1 मुनिश्री चन्द्रप्रभ श्रमण परम्परा के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। उनकी लेखनी से अब तक सैकड़ों ग्रन्थ निःसृत हो चुके हैं। प्रवचन कला में सिद्धहस्त का मुनिश्री का उपरोक्त ग्रन्थ जनकपुरी, अजमेर में अगस्त २००० में दिये गये प्रवचनों का संग्रह - रूप है। इनके माध्यम से मुनिश्री ने गूढ़तम विषयों को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से जनसामान्य के मन में पहुँचाने का सार्थक प्रयास किया है। आशा है मुनिश्री के प्रवचनों से समाज लाभान्वित होगा । पुस्तक सुन्दर बाइण्डिग में उत्तम साज-सज्जा के साथ है। पुस्तक का कवर सहज ही आकर्षित करता है। छपाई भी अत्यन्त सुन्दर एवं स्पष्ट है। इतने कम मूल्य में पुस्तक में प्रस्तुत मोती के दानेरूपी १५ प्रवचनों को पढ़कर समाज अवश्य लाभान्वित होगा और अपने को सुसंस्कृत प्रगति के पथ पर लाने में सक्षम होगा। राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोधछात्र) धर्म आखिर क्या है? ; लेखक - महोपाध्याय ललितप्रभसागर; प्रकाशकपूर्वोक्त; प्रथम संस्करण २००२; आकार - डिमाई; पृष्ठ- १४६; मूल्य- ३०/- रुपया । प्रस्तुत पुस्तक महोपाध्याय ललितप्रभसागर द्वारा नागौर में १९८८ में दिये गये प्रवचनों का संकलन है। इसमें कुल १४ प्रवचन दिये गये हैं। इनका सम्पादन श्रीमती लता भण्डारी 'मीरा' ने किया है। धर्म एक बड़ा ही गूढ़ विषय है जिसे बड़े ही सुन्दर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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