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१७० : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर/२००२ एवं इस ग्रन्थमाला के प्रधान सम्पादक डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। हम उनसे अपेक्षा रखते हैं कि भविष्य में भी वे इसी प्रकार की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करते रहेंगे। उत्तम कागज पर मुद्रित इस ग्रन्थ की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक तथा मुद्रण सुस्पष्ट है। ग्रन्थ के दोनों भागों का मूल्य ९००/- रुपया रखना प्रकाशक संस्था की उदारता का परिचायक है। यह ग्रन्थ सभी शोध पुस्तकालयों और उक्त विषयों पर कार्य करने वाले अध्येताओं के लिए अनिवार्य रूप से संग्रहणीय और मननीय है।
प्रभावक स्थविरो- लेखक- डॉ० रमणलाल ची० शाह; भाषा- गुजराती; प्रकाशक- श्री मुम्बई जैन युवक संघ, ३८५, सरदार वल्लभभाई पटेल रोड, मुम्बई ४००००४; पृष्ठ ८+४७८; आकार- डिमाई; मूल्य १५०/- रुपये।
प्रस्तुत पुस्तक गुजराती जैन-साहित्य के पुप्रसिद्ध लेखक डॉ० रमणलाल ची० शाह की एक अनमोल कृति है। पुस्तक ५ विभागों में विभक्त है। प्रथम विभाग में गणिवर श्री मुक्तिविजय जी (श्री मूलचन्द जी महाराज); श्री विजयानन्दसूरि जी महाराज (श्री आत्माराम जी महाराज); श्री विजयवल्लभसूरि जी महाराज; श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज और श्री चारित्रविजय जी महाराज का ९२ पृष्ठों में सविस्तार जीवन परिचय दिया गया है। द्वितीय विभाग में श्री बूटेराय जी महाराज; श्री वृद्धिचन्दजी महाराज; श्री मोहनलाल जी महाराज और श्री विजयशान्तिसूरि जी महाराज की लगभग १०० पृष्ठों में जीवनी दी गयी है। तृतीय विभाग में लगभग ७८ पृष्ठों में श्री राजेन्द्रसूरि जी महाराज; श्री शान्तिसागर जी महाराज और श्री अजरामरस्वामी का जीवन चरित्र वर्णित है। उल्लेखनीय है कि श्री शान्तिसागर जी महाराज दिगम्बर-सम्प्रदाय के और अजरामरस्वामी स्थानकवासी-परम्परा से सम्बद्ध रहे हैं। चतुर्थ विभाग में विजयधर्मसूरि जी महाराज और आनन्दसागर जी महाराज का लगभग ४७ पृष्ठों में वर्णन है। पाँचवें और अन्तिम विभाग में लगभग १०० पृष्ठों में पण्डित कवि श्री वीरविजय जी महाराज; शासनसम्राट् श्री विजयनेमिसूरि जी महाराज और श्री विजय रामचन्द्रसूरि जी महाराज की जीवनी दी गयी है। इस प्रकार डॉ० शाह ने जैन-परम्परा में पिछले २०० वर्षों में हुए उक्त प्रभावक आचार्यों का एक प्रामाणिक जीवन चरित्र प्रस्तुत कर एक महान् . कार्य सम्पन्न किया है। हम आशा करते हैं कि भविष्य में वे इसी प्रकार इसी काल खण्ड में जैन-परम्परा में हुए अन्य प्रमुख प्रभावक आचार्यों का भी इसी प्रकार से जीवनचरित्र प्रस्तत करेंगे। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक और मुद्रण सुस्पष्ट है। ऐसे सुन्दर ग्रन्थ के लेखन और उसके महत्त्वपूर्ण रूप में प्रकाशन के लिए लेखक
और प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं। यह पुस्तक सभी गुजराती भाषा-भाषी जैन श्रावकों के लिए पठनीय और पुस्तकालयों के लिए संग्रहणीय है।
शिवप्रसाद
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