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________________ जैन संस्थाएँ एवं समाज में उनका योगदान : ११९ २०वीं शताब्दी से पूर्व धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से जैनधर्म में कोई संगठन नहीं था। सामान्यत: १९वीं शताब्दी तक भट्टारकगण समाज के संचालक थे, जिनकी स्थापना प्राय: मध्यकाल में हुई थी। सम्भवत: मुस्लिम शासकों ने जब जैन मुनिजनों के विरुद्ध नग्नता विरोधी अभियान शुरु किया तभी धर्म की रक्षा हेतु भट्टारकों का उद्भव हुआ। भट्टारक ही धार्मिक समस्याओं का समाधान किया करते थे। सामाजिक क्षेत्र में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती थी। ये न केवल धर्म सन्देश का अपितु जैन-समुदाय को संगठित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी करते थे। परन्तु २०वीं शताब्दी में भट्टारकों का प्रभाव लगभग नगण्य हो गया और इनका स्थान स्थानीय पंचायतों ने ले लिया। जैन-समुदाय द्वारा कुछ धार्मिक संस्थान स्थापित किये गये हैं जिनमें जैनधर्म-सम्बन्धी शिक्षा प्रदान की जाती है। इन संस्थानों का स्वयं का शिक्षा बोर्ड होता है जो परीक्षाएँ आयोजित करता है। यद्यपि वर्तमानकाल में धार्मिक शिक्षा पर आधारित संस्थानों का महत्त्व कम हो गया है तथापि कुछ संस्थाएँ जैसे श्री स्यादवाद महाविद्यालय, (वाराणसी), जैन विश्व भारती संस्थान, (लाडनूं, राजस्थान) धार्मिक शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। शैक्षणिक संस्थाएँ जैन-समुदाय द्वारा अनेक शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की गयी जिसमें शिक्षा के साथ-साथ धर्म का भी समावेश किया गया। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जैनविद्या विभाग हैं। इसमें जैन अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर (राजस्थान), जैनविद्या एवं प्राकृत-विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय (उदयपुर), जैनविद्या विभाग, कर्नाटक विश्वविद्यालय (धारवाड़), श्रमण विद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय (वाराणसी, उ०प्र०), जैन-दर्शन विभाग, (संस्कृत-विद्या धर्म-विज्ञान संकाय), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ०प्र०), संस्कृत प्राकृत-विभाग, पूना विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र), पालि-प्राकृत-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (हरियाणा), प्राकृत-विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (म०प्र०), जैनविद्या-विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर (कर्नाटक), पालि-प्राकृत-विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र), जैनविद्या-विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय (मद्रास) तथा प्राकृत-विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद (गुजरात) आदि प्रमुख हैं। लौकिक एवं धार्मिक शिक्षा एक साथ प्रदान करने हेतु जैन-समुदाय द्वारा कई आवासीय स्कूल एवं विद्यालयों की स्थापना की गयी है। इनको 'गुरुकुल' के नाम से जाना जाता है। यद्यपि इसमें विश्वविद्यालयों की भांति ही विषयों का अध्ययन कराया जाता है तथापि इसके साथ-साथ जैनधर्म की निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। जिन स्थानों पर गुरुकुल उपलब्ध नहीं है वहाँ बोर्डिंग हाउस एवं छात्रावास की सुविधाएँ विद्यार्थियों को प्रदान की गयी हैं। भारत के लगभग समस्त बड़े शहरों में जो शिक्षा के केन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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