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८६ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक
पञ्च महाव्रतयुक्तं त्रिगुप्तिगुप्तं च समितिसम्पन्नम्। सम्यग्दर्शनरहितं निरर्थकं जायते वृत्तम्।।
- व्रतोद्योतन, पद्य ३३६ अत: इससे भी यह स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन ही मुक्ति का बीज है। महाकवि दौतलराम ने सम्यग्दर्शन को मोक्ष-महल की प्रथम सीढ़ी कहा है।
___ मोक्ष महल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान चरित्रा।
योगीन्द्रदेवकृत श्रावकाचार में लिखा है-दंसणभूमिहं बाहिरा जिय वयरुक्ख ण हुंति। अर्थात् इस सम्यग्दर्शन की भूमिका बिना हे जीव! व्रत रूपी वृक्ष नहीं होते हैं। तात्पर्य यह कि सम्यग्दर्शन वह उपजाऊ भूमि है, जिसमें चारित्ररूपी वृक्ष उत्पन्न होता है और समय आने पर उसमें फल लगते हैं तथा क्रमश: पकने पर मोक्षरूपी मीठे फल को प्रदान करते हैं। अत: मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन की भूमिका निस्सन्देह न केवल महत्त्वपूर्ण है, अपितु अनिवार्य है। सम्यग्दर्शन रूपी उपजाऊ भूमि में चारित्र रूपी वृक्ष के बिना मोक्षरूपी फल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
सन्दर्भ : १. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:। - तत्त्वार्थसूत्र, १/१.
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