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८४ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक
बानारसि कहैं भैया भव्य सुनो मेरी सीख,
___ कैहूं भांति कैसेहूंकै ऐसो काजु कीजिए। एकहूं मुहूरत मिथ्यात्व को विधूस होइ,
___ ग्यान को जगाई अंस हंस खोज लीजिए। वाहीको विचार वाको ध्यान यहै कौतूहल,
यौंही भरि जनम परम रस पीजिए। तजि भव-वासको विलास सविकार रूप,
अन्तकरि मोह कौ अनन्तकाल जीजिए।। पं० बनारसीदास जी कहते हैं कि- हे भाई भव्य! यदि मेरी बात मानो तो किसी भी प्रकार प्रयत्न करके ऐसा कार्य करो कि किसी प्रकार एक मुहूर्त मात्र के लिये मिथ्यात्व का नाश हो जाय और अपने ज्ञान को जाग्रत करके अपने आत्मा रूप हंस को खोज लो। तदनन्तर उसी का विचार, उसी का ध्यान करते हुये आजीवन परमानन्द रूप रस का पान करो और क्रमश: मोह का नाश करके विकाररूप संसार के वास का त्याग कर अन्त में सिद्धत्व पद प्राप्त कर अनन्तकाल तक सुख को प्राप्त करो।
___यदि तूने एक बार मिथ्यात्व का त्याग करके मात्र सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लिया और अभी चारित्र की प्राप्ति नहीं भी हुई है अर्थात् अव्रती है तो भी सुन! तू अशुभरूप नरक और तिर्यञ्च-इन दो गतियों को प्राप्त नहीं होगा। मनुष्यगति में भी तू न तो नपुंसक होगा और न ही स्त्रीपर्याय को प्राप्त होगा। अब रही बात पुरुषपर्याय की तो पुरुषपर्याय में भी लोक निन्दित नीच कुल में तेरा जन्म नहीं होगा। अब कोई यह कहे कि यह सब होकर भी अल्पकाल में ही मृत्यु हो जाये तो क्या होगा? इसके लिये आचार्य कहते हैं कि हे सम्यग्दृष्टि भाई ! तेरी आयु अल्प नहीं होगी। अब बात रह जाती है कि ये सब कुछ प्राप्त भी हो गया, किन्तु सम्पूर्ण जीवन दरिद्री रहा तो दःखी होना ही है। अत: आचार्य समन्तभद्र पुनः कहते हैं कि हे सम्यग्दृष्टि भाई! यदि तू व्रतों से रहित है तो भी तू दरिद्रता को प्राप्त नहीं होगा।
सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर इतना आश्वासन तो हमारे आचार्यों ने जिनवाणी के आधार पर दी ही है कि उक्त प्रतिकूल परिस्थितियों को सम्यग्दृष्टि जीव प्राप्त नहीं होगा। साथ ही यह भी सुनिश्चित है कि सम्यग्दर्शन से पवित्र होने पर यदि तूने व्रत रूप चारित्र को भी अपने जीवन में उतार लिया और उत्तरोत्तर चारित्र में वृद्धि करता गया तो तेरे ओज, तेज, विद्या, पराक्रम और कीर्ति में वृद्धि होगी। विजय को प्राप्त करेगा और वैभव सम्पन्न होगा। श्रेष्ठ कुल में जन्म लेगा। महान् पुरुषार्थों का साधक होगा और मनुष्यों में सिरमौर होगा। सम्यग्दृष्टि जीव अणिमा-महिमा आदि आठ
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