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स्व० भँवरलालजी नाहटा
( संक्षिप्त परिचय)
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एक युगपुरुष
जैन - साहित्य महारथी, युगपुरुष स्व० भँवरलालजी नाहटा का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखलाने जैसा कार्य है। सात दशकों तक निरन्तर जैन साहित्य, धर्म, कला, पुरातत्त्व आदि के क्षेत्र में अध्ययन, लेखन, शोध सम्बन्धी आपके योगदान से सम्पूर्ण शिक्षाजगत् भली-भांति अवगत है। किसी उपाधि या विशेषण से आपके योगदान का मूल्यांकन सम्भव नहीं । विगत ११ फरवरी को ९२ वर्षों की दीर्घ आयु में आपके निधन से एक युग का अन्त हो गया।
प्रातः स्मरणीय भँवरलालजी नाहटा का जन्म वि० सं० १९६८ आश्विन वदि १२ मंगलवार तदनुसार १९ सितम्बर १९११ ईस्वी को बीकानेर शहर में एक सम्पन्न जैन परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भैरूमलजी व माता का नाम श्रीमती तीजा देवी था। अगरचन्दजी नाहटा आपके हमउम्र किन्तु रिश्ते में चाचा थे। आपने आजीवन उन्हें काकाजी अगरचन्दजी कहकर उनके प्रति जो सम्मान प्रकट किया वह अपने आपमें अनूठी और सभी के लिए अनुकरणीय है। आपकी स्कूली शिक्षा श्री अगरचन्दजी के साथ ५वीं कक्षा तक ही हुई और परिस्थितिवश आपको व्यवसाय में जुट जाना पड़ा। खरतरगच्छाचार्य श्री सुखसागरजी महाराज व आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी महाराज के सान्निध्य, प्रेरणा और मार्गदर्शन में आप दोनों के अध्ययन, लेखन व संशोधन का जो क्रम प्रारम्भ हुआ वह निरन्तर बढ़ता ही गया और अबाध रूप से आजीवन चलता रहा। सन् १९८२ में अगरचन्दजी नाहटा के आकस्मिक निधन के पश्चात् साहित्यजगत् में जो रिक्तता उत्पन्न हुई उसे भँवरलालजी ने कभी भी अनुभव नहीं होने दिया और वृद्धावस्था के बावजूद अगले २० वर्षों तक अपने जीवन के अन्तिम समय में भी साहित्य लेखन संशोधन में पूर्ववत् तन मन और धन से समर्पित
रहे।
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अपने जीवनकाल में नाहटाजी ने कई हजार शोध लेख लिखे जो देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए। बड़ी संख्या में आपके शोधलेख अगरचन्दजी के नाम से ही छपे तथा बहुत से लेखों और पुस्तकों के लेखक और सम्पादक के रूप में नाहटाद्वय (अगरचन्दजी- भँवरलालजी ) का नाम मिलता है। आपने अपने लम्बे जीवनकाल में अनेक शोधार्थियों को मार्गदर्शन देकर उनसे विभिन्न विषयों पर शोधकार्य सम्पन्न कराया। आपकी विद्वत्ता का लाभ न केवल शोधच्छात्रों को मिला बल्कि
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