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सम्पादकीय
श्रमण जनवरी-जून २००२ का संयुक्तांक पाठकों के समक्ष उपस्थित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। यद्यपि यह अंक अब से लगभग ६ माह पूर्व ही प्रकाशित हो जाना चाहिए था किन्तु कुछ अपरिहार्य कारणों से इसके प्रकाशन में विलम्ब होता रहा, इसके लिये हम अपने सुधी पाठकों से क्षमाप्रार्थी हैं। यह अंक जैन साहित्य, इतिहास और कला के मर्मज्ञ, निष्काम विद्याव्यसनी, सरस्वती के वरद्पुत्र स्वनामधन्य भंवरलाल जी नाहटा के स्मृति अंक के रूप में है। हमारी हार्दिक इच्छा थी कि इस अंक में हम नाहटा जी के लेखों को ही स्थान दें किन्तु हम अपनी सीमाओं के कारण ऐसा करने में असमर्थ रहे। इस अंक के प्रारम्भ में नाहटा जी की संक्षिप्त जीवनी तथा उनके द्वारा लिखित और सम्पादित ग्रन्थों की सूची दी गयी है जो हमें उनके परिजनों से प्राप्त हुई है। यहाँ हम उसे अविकल रूप से प्रकाशित कर रहे हैं। इस अंक में अन्य लेख जैन साहित्य, दर्शन, भाषा
और इतिहास से सम्बन्धित हैं। हमारा प्रयास यही है कि उक्त विषयों पर लिखे" गये प्रामाणिक और विवाद रहित लेख ही श्रमण में प्रकाशित हों। यह कि सदैव ऐसे लेख प्राप्त कर पाना सम्भव नहीं होता फिर भी यह हमें हर्ष हो रहा है कि विद्वद्जनों के सहयोग से हम इस अंक में जो भी सामग्री दे रहे हैं वे प्रामाणिक और प्राय: विवादों से रहित हैं।
श्रमण का यह अंक आपको कैसा लगा, इस सन्दर्भ में आप अपने सुझावों से अवगत कराने की कृपा करें ताकि आगामी अंकों में आवश्यक संशोधन/परिवर्धन किया जा सके। सम्माननीय लेखकों से भी निवेदन है कि श्रमण के प्रकाशनार्थ प्रेषित अपने लेखों के सन्दर्भ मूल-ग्रन्थों से मिलान कर ही भेजें अन्यथा उन्हें प्रकाशित कर पाना हमारे लिये सम्भव न हो सकेगा।
सम्पादक
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