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२४ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक
खवगे य खीणमोहे जिणे य दुविहे असंखगुणसेढी। उदयो तव्विवरीओ कालो संखेज्जगुणसेढी।। शिवशर्मसूरिकृत कर्म-प्रकृति
(उदयकरण) गाथा ३९४-३९५. २२. सम्म दर (देस) सव्वविरई अणविसंजो य दंसखवगे या
मोहसम संत खवगे, खीण सजोगियर गुणसेढी।। - पंचमकर्मग्रन्थ, गाथा ८२. २३. मिच्छादो सद्दिट्ठी असंख-गुण-कम्म-णिज्जरा होदि।
तत्तो अणुवय-धारी तत्तो य महवई णाणी। पढम-कसाय-चउण्हं विजोजओ तह य खवय-सीलो या दंसण-मोह-तियस्य य तत्तो उवसमग-चत्तारि।। खवगो य खीण-मोहो सजोइ-णाहो तहा अजोईया। एदे उवारिं उवारिं असंख-गुण-कम्म-णिज्जरया।। कार्तिकेयानुप्रेक्षा(९/१०६-१०८) स्वामीकुमार, टीका शुभचन्द्र, सं० डॉ० ए०एन०
उपाध्ये, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, आगास। २४. गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण, पृ० ३०. २५. षट्खण्डागम, चतुर्थखण्ड (वेदना) सप्तम वेदनाविधान की चूलिका। २६. गुणस्थान-सिद्धान्त : एक विश्लेषण, पृ० २६.
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