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साहित्य-सत्कार : १७९
सूक्तिसंग्रह, सम्पादक- ब्र० यशपाल जैन, प्रकाशक- पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर, जयपुर (राजस्थान) ३०२०१५, प्रथम संस्करण २००२ ई०, पृष्ठ ७२, मूल्य ४/- रुपये।
विवेच्य पुस्तक में आचार्य वादीभसिंह विरचित क्षत्रचूड़ामणि नामक ग्रन्थ से ब्रह्मचारी यशपाल जी ने अत्यन्त श्रमपूर्वक सूक्तियों का सङ्कलन किया है। इसमें संकलित सूक्तियाँ हमारे दैनिक जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। इन पर चिन्तन-मनन करने से अवश्य ही भावों में निर्मलता एवं जीवन में शुचिता आएगी। भारतीय वाङ्मय में सूक्तियों का बड़ा महत्त्व है। इनका आकार छोटा होता है फलतः इन्हें याद करना सरल होता है और यही इनका सबसे बड़ा गुण है। संस्कृत जैन साहित्य में क्षत्रचूड़ामणि एक अनुपम रचना है। इस ग्रन्थ में विभिन्न विषयों पर पद-पद पर सूक्तियों का प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत कृति में सूक्तियाँ यथावत् ही दी गयी हैं, मात्र उनका हिन्दी अनुवाद अपने शब्दों में रखा है। सूक्तियाँ अकारादि क्रमानुसार हैं तथा प्रत्येक सूक्ति के अन्त में लम्ब (अध्याय) व श्लोक क्रमांक भी दिया है, जिससे पाठक मूल ग्रन्थ से भी मिलान कर सकें।
प्रस्तुत ग्रन्थ में कुल ११ लम्ब हैं, लम्ब के क्रमानुसार दिए गए सुभाषितों के प्रकरण में प्रत्येक श्लोक के प्रारम्भ में उसकी विषय-वस्तु को स्पष्ट करने वाले प्रसंग-वाक्य अपनी तरफ से जोड़े गए हैं। इस तरह का प्रयास निश्चय ही पाठकों के लिए उपादेय सिद्ध होगा। पुस्तक आकार में छोटी अवश्य है, परन्तु इसकी विषयवस्तु सभी वर्ग के मनुष्यों के लिए समान रूप से उपयोगी है।
- अर्पिता चटर्जी प्रमाणनिर्णय, कर्ता- आचार्य वादिराज : सम्पादक-अनुवादक- डॉ० सूरजमुखी जैन; प्रथम संस्करण वि०सं० २०५८/ई०सन् २००१; प्रकाशक- अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान, बीना (सागर) मध्य प्रदेश ४७०११३; आकार - डिमाई; पृ० ११०+५; मूल्य - सदुपयोग।
प्रमाणनिर्णय जैन-न्याय का एक प्राचीन ग्रन्थ है। इस में नैयायिक, मीमांसक एवं बौद्ध दार्शनिकों की प्रमाणविषयक मान्यताओं की खण्डनात्मक एवं मण्डनात्मक समीक्षा की गयी है। इस ग्रन्थ में सम्यग्ज्ञान को ही प्रमाण बताया गया है- सम्यग्ज्ञानं प्रमाणं।
दार्शनिक साहित्य में ग्रन्थकार की अपेक्षा ग्रन्थ को उद्धत करने की प्रथा अधिक है अतएव बहुत से ग्रन्थकार आज विस्मृति के गर्भ में हैं। सौभाग्य का विषय है कि प्रमाणनिर्णय का अधिक उल्लेख होने पर भी आचार्य वादिराज को भुलाया नहीं गया।
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