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________________ साहित्य-सत्कार षट्खण्डागम की शास्त्रीय भूमिका, डॉ० हीरालाल जैन, प्रकाशक- प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर, पृष्ठ ५१२, प्रथम संस्करण-ई० सन् २०००, मूल्य ४९५/- रुपये। परम श्रद्धेय स्व० डॉ० हीरालाल जी जैन मेरे शोधप्रबन्ध 'जैन धर्म में अहिंसा विचार' के परीक्षक थे। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे उनकी महत्त्वपूर्ण कृति एवं उनके विषय में अपने भाव व्यक्त करने का सुअवसर मिला है। डॉ० हीरालालजी जैन मात्र जैन परम्परा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति के मनीषी थे। उनके जैसे ज्ञानी पुरुष सदा अभिनन्दनीय होते हैं, वन्दनीय होते हैं। प्रस्तुत कृति तथा प्रकाशन की प्रक्रिया में षट्खण्डागम के १६ भाग उनके बीस वर्षों के अथक परिश्रम के सुफल हैं। इस महान कार्य से उन्होंने जैन साहित्य का उद्धार तथा जैन साहित्य-प्रेमियों का बहुत बड़ा उपकार किया है। इसके लिए प्राच्य विद्या से सम्बन्धित सभी लोग सामान्य रूप में तथा जैन विद्या-प्रेमी विशेष रूप में उनके सदा ऋणी रहेंगे। सन्तों के आशीर्वाद से कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाते हैं। प्रस्तुत प्रकाशन को परम पू० उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त है यह अति प्रसन्नता की बात है। उनके आशीर्वाद से जैन साहित्य आगे भी समृद्ध होता रहेगा, ऐसी आशा है। __पुस्तक की बाह्य रूपरेखा आकर्षक है तथा छपाई साफ-सुथरी है अत: प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। -~~ डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा जैन न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान, सम्पादक- डॉ० कमलेश कुमार जैन, डॉ० जयकुमार जैन, डॉ० अशोक कुमार जैन, प्रकाशक- प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर, उ०प्र०, पृ० १९८, प्रथम संस्करण १९९९ ई०, मूल्य१००/- रुपये। प्रस्तुत कृति दिनांक २७, २८, २९ अक्टूबर १९९६ को शाहपुर (मुजफ्फरनगर) में आचार्य अकलंकदेव पर आयोजित अखिल भारतीय विद्वत् संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा पढ़े गए निबन्धों का संकलन है। आचार्य अकलंकदेव ने जैन न्याय को सुव्यवस्था एवं सुदृढ़ता प्रदान की है जिसके कारण कभी-कभी जैन न्याय को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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