________________
२१५ कल्लोलिनी का कवि प्रकृति के सहज और सरस कल्लोल से प्रेरित एवं प्रभावित है। इसमें प्रकृति के विविध मनोहारी सौन्दर्यों को शब्दों में बाँधने का सराहनीय प्रयास किया गया है। अतएव यह रचना प्रकृति-प्रधान है। कभी-कभी कवि प्रकृति की मोहकता के वशीभूत हो संसार की यथार्थता से विमुख हुआ सा नजर आता है जिसका संकेत इन पंक्तियों से मिलता है
तेरा जग आनन्दलोक है, जहाँ न कोई रोग-शोक है। बाहर निर्मलता विराजती भीतर विभावरी। तुम-सा बनना चाह रहा मन, दो इसको हे सुहद मधुर वन छूटे जगती का पागलपन यों कर सजनी री।
लगता है कवि पर प्रकृतिवाद ही नहीं बल्कि छायावाद का भी प्रभाव है। किन्तु जब समाज की कटु यथार्थता जिससे वह भयभीत है, अपने को कवि के समक्ष प्रस्तुत करती हुई उसे याद दिलाती है कि मैं तेरा कर्तव्य हूँ और प्रकृति-प्रेम तेरी मनोकामना। तब वह बोल उठता है
अब न कोई रहे भिक्षुक,दैन्य दाता दान। इस तरह इस रचना में कवि का सहज हृदय प्रकृति और समाज के बीच दोलायमान है।
कवि डॉ० मंगला प्रसाद जी इस सुकृति के लिए बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की बाह्याकृति आकर्षक और मुद्रण स्पष्ट है।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा श्री शान्तिलाल वनमाली शेष्ठ-श्रद्धाञ्जलि स्मारिका : प्रकाशक- श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ फाउण्डेशन, ९ए, मेन रोड, ब्लाक ३, जयनगर, बेंगलोर ५६००११; आकार- रायल; पृ० १२६८; मूल्य- स्वाध्याय।।
प्राकृत, संस्कृत, पालि, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाओं के गहन अध्येता, सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं उद्योगपति स्व० शान्तिलाल वनमाली शेठ की पुण्यस्मृति में उनके परिवार की ओर से इस स्मारिका का प्रकाशन किया गया है। इसमें स्व० शान्तिभाई का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा विभिन्न समाजसेवियों और विद्वानों द्वारा उनके निधन पर भेजे गये संस्मरण दिये गये हैं। विभित्र अवसरों पर देश-विदेश की प्रमुख हस्तियों के साथ शान्तिभाई के लिये गये विभिन्न चित्र इसे और भी आकर्षक बना देते हैं। स्मारिका के प्रारम्भ में ही सन्मति स्वाध्याय पीठ के भवन के नवनिर्माण हेतु भूमिपूजन के अवसर पर शान्तिभाई का शुभ सन्देश भी उन्हीं की हस्तलिपि में प्रकाशित किया है जिसे उन्होंने अपने निधन से मात्र आठ दिन पूर्व ही लिखा था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org