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१८९ सान्निध्य प्राप्त हुआ था। संयम की शिथिलता उन्हें बर्दास्त नहीं थी। वे अप्रमत्त योगी व चारित्रचूड़ामणि सन्तरत्न थे।"
पूज्य सोहनलाल जैन हाईस्कूल की मुख्याध्यापिका श्रीमती कमलेश नविता ने कहा- "वे जैन समाज के पहले आचार्य थे जिन्होंने समाज को शिक्षा व सेवा के रचनात्मक कार्यों के करने की प्रेरणाएं दी थी। वाराणसी का पार्श्वनाथ शोध संस्थान (अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ) जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा मान्य है, यह एकमात्र जैनों का अद्भुत शिक्षा संस्थान पूज्यश्री की अमर देन है। यहां से सैकड़ों शोध ग्रन्थ प्रकाशित हए हैं तथा हजारों विद्वानों ने जैनधर्म व दर्शन के सिद्धान्तों का गहरा अध्ययन किया है।'' इस अवसर पर मंच का संचालन महामन्त्री श्रीमहेन्द्र जैन ने किया और प्रभावना का कार्यक्रम मित्रमण्डल के सदस्यों की ओर से सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर पूज्य श्री सोहनलाल जैन स्मारक पर मित्रमण्डल के सदस्यों द्वारा विशाल लंगर भी लगाया गया।
नयी दिल्ली ७ मई : श्रमणसंघ के चतुर्थपट्टधर आचार्य डॉ० शिवमुनि जी म०सा० का चादर समर्पण समारोह दिनांक ७ मई को स्थानीय ऋषभ-विहार में धूमधाम से सम्पन्न हुआ। इसमें बड़ी संख्या में स्थानकवासी समाज के साधु-साध्वी उपस्थित रहे। समारोह में श्री सुन्दरलाल पटवा, श्री सुरेशदादा जैन तथा बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मन्त्री प्रो० सागरमल जैन, पूर्व मन्त्री श्री भूपेन्द्रनाथ जैन तथा संस्थान के संयुक्त मन्त्री श्री इन्द्रभूति बरड़ विशेष रूप से यहाँ उपस्थित थे। ठीक १ बजकर १० मिनट पर चादर समर्पण समारोह सम्पन्न हआ। इसी समारोह में पार्श्वनाथ विद्यापीठ को मान्य विश्वविद्यालय बनाने हेतु समाज से आर्थिक सहयोग की अपील भी की गयी जिस पर समाज के गणमान्य लोगों ने पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
यूनेस्को द्वारा आचार्यश्री विद्यानन्दजी का व्याख्यान आयोजित
नयी दिल्ली ८ मई : यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति एवं सौहार्द की भावनाओं के प्रचार-प्रसार के लिये चलाये जा रहे विश्वव्यापी कार्यक्रम के अन्तर्गत दि०८ मई २००१ को राजधानी स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के भव्य सभागार में आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज का मंगल व्याख्यान आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्री श्री मुरलीमनोहर जोशी ने की।
पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र का शुभारम्भ जयपुर २० मई : राजस्थान में स्थापित पहले पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र का
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