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करता है तथा कर्म करने के लिये प्रेरित करता है तथा संहार द्वारा आत्माओं को विश्राम का अवसर भी देता है। शिव जीव पर अनुग्रह द्वारा शक्तिपात करता है। शक्तिपात के अनन्तर दीक्षा से जीव शिवोहम् भावना का अनुभव करता है और यही भावना मोक्ष का स्वरूप है।
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध सात भागों में बाँटा गया है। प्रथम अध्याय दो खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में जैनधर्म के इतिहास और साहित्य के अन्तर्गत उसके विकास
और प्रादुर्भाव का क्रमिक अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत अध्याय में जैन दर्शन की प्राचीनता सम्बन्धी साक्ष्यों के वर्णन के साथ-साथ २४ तीर्थङ्करों के जीवन और उपलब्धि का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। जैन दर्शन का साहित्य अत्यन्त विशाल है अत: उसे एक अध्याय के अन्तर्गत समेटने का प्रयास तो व्यर्थ है फिर भी उसे प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
द्वितीय खण्ड में शैव सिद्धान्त का इतिहास और उसकी प्राचीनता सम्बन्धी साक्ष्यों का विवेचन किया गया है। शैवदर्शन की प्राचीनता सिन्धु सभ्यता के भी पहले से मानी जाती है। इस साक्ष्य के अनुसार शैव दर्शन अत्यन्त प्राचीन है। इस प्रबन्ध में आगम काल, शैव सन्तों का काल और दार्शनिक काल इन तीनों का विवेचन किया गया है। यद्यपि शैवागम के विषय में सामग्री अत्यन्त अल्प मात्रा में ही उपलब्ध है फिर भी यथा "उपलब्ध सामग्री के आधार पर यहाँ इसका विवेचन है।
द्वितीय अध्याय “शैव दर्शन में साध्य' के अन्तर्गत तीन प्रमुख तत्त्व जीव, बन्धन और मोक्ष का वर्णन किया गया है। ये तीनों तत्त्व खण्ड 'अ','ब' और 'स' में विभाजित हैं। शैव दर्शन में जीव, बन्धन और मोक्ष को महत्त्वपूर्ण माना गया है। शैव सिद्धान्त दर्शन में तीनों तत्त्वों को पति, पशु और पाश की संज्ञा दी गयी है।
तृतीय अध्याय के अन्तर्गत जैन दर्शन के तीन प्रमुख तत्वों का प्रतिपादन किया गया है। प्रस्तुत अध्याय में जीव तत्त्व का परिमाण, भेद, प्रकार तथा जीव का बन्धन
और बन्धन उच्छेद की प्रक्रिया का विवेचन करते हुए जीव तत्त्व के मोक्ष का वर्णन किया है।
चतुर्थ अध्याय में साधना की अवधारणा के अन्तर्गत जैन दर्शन में वर्णित त्रिरत्न का संक्षिप्त विवेचन किया गया है तथा साथ ही साथ यह बताया गया है कि जैन दर्शन में भक्ति द्वारा भी मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। इस प्रकार इस अध्याय में कर्ममार्ग, भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग और योगमार्ग का विशद् विवेचन है।
पञ्चम अध्याय में शैव सिद्धान्त में साधना की अवधारणा की विवेचना की गयी है। शैव सिद्धान्त में साधना का विशद विवेचन होते हुए भी उसकी साधना सम्बन्धी साक्ष्य अत्यन्त अल्प मात्रा में प्राप्त होते हैं। शैव सिद्धान्त में मोक्ष के चारों मार्गों कर्म,
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