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औद्योगिक दुर्घटनाएँ
रसायन उद्योगों में भीषण दुर्घटनाएं हो रही हैं। जैसा कि सर्वविदित है, १९८५ में भोपाल स्थित यूनियन कारबाइड के कारखाने में एक वाल्व में छेद हो जाने के कारण ३० टन लेथल मिथाइल गैस हवा में फैल गयी। इस जहरीली गैस के दुष्प्रभाव से २००० व्यक्तियों की तुरन्त मौत हो गयी तथा १७००० व्यक्ति हमेशा के लिये स्थायी रूप से अपंग हो गये।
विश्व में बड़ी मात्रा में परमाणु बमों का निर्माण हो रहा है तथा उस बनी हुई सामग्री को नियन्त्रण में रखना बहुत कठिन है। विकसित राष्ट्रों के पास १५००० टन परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का संग्रह हो चुका है। इन परमाणु कारखानों में अनेक भीषण दुर्घटनाएँ भी घटित हुई हैं। यूक्रेन स्थित चेर्नोबिल परमाणु संयन्त्र में जो दुर्घटना घटित हुई, उससे २०००० व्यक्तियों की मृत्यु हुई और ५ लाख से अधिक लोग बीमारियों के शिकार हुए। माँस उद्योग एवं पर्यावरण
माँस का बड़ी मात्रा में उत्पादन पर्यावरण के विनाश का कारण है। विश्व में उत्पन्न होने वाला ४० प्रतिशत अनाज उन पालतू जानवरों के चारे के लिये व्यय होता है,
नन्हें बाद में माँस पैदा करने के लिये कत्ल कर दिया जाता है। यदि विश्व में माँस का उत्पादन कम कर दिया जाय तो पर्यावरण के सुधार पर अनुकूल असर पड़ेगा। तब कम मात्रा में वृक्षों को काटना पड़ेगा एवं भूमि का कटाव भी घट जायेगा।
उपभोक्तावाद
उपभोक्तावाद का विस्तार इस पाश्चात्य विचारधारा पर आधारित है कि वस्तुओं का अधिकतम उत्पादन विश्व की सभी आर्थिक समस्याओं का समाधान है और इसी से जनसामान्य का आर्थिक एवं सामाजिक विकास सम्भव हो सकता है। अपने जीवन को समृद्ध बनाने के लिये हमें वस्तुओं का अधिकतम संग्रह एवं उपभोग करना चाहिए। अमेरिका के लोग आज सन् १९५० की तुलना में वस्तुओं का दुगुना संग्रह एवं उपभोग कर रहे हैं। प्रश्न उठता है कि सन् १९५० की तुलना में क्या वे दुगुना सुखी हैं? यह उपभोक्तावाद का सिद्धान्त अनैतिक सिद्धान्तों पर आधारित है जहाँ स्वार्थ की भावना ही प्रमुख है तथा सामाजिक कल्याण का महत्त्व गौण है। कहते हैं कि जनसंख्या की असीमित वृद्धि पर्यावरण के विनाश का मुख्य कारण हैं और इसमें कोई सन्देह भी नहीं है लेकिन समृद्ध समुदाय की वस्तुओं के बारे में बढ़ती हुई मांग और तृष्णा भी पर्यावरण विनाश का एक बहुत बड़ा कारण है, इसकी ओर कम ध्यान दिया गया है।
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