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११८ ५९-७३) और द्वितीय गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर एक पाषण.पर (नं० ९० (२४०))। ये दोनों शिलालेख एकदूसरे के परिपूरक हैं। इन लेखों में कहा गया है कि गंगराज ने तलकाडु पर घेरा डालने वाले चोल सामन्त अदियम, नरसिंह वर्मा, दामोदर व तिगुलदास (तैलंगों) को बुरी तरह से परास्त कर गंगवाडि देश को बचा लिया तथा चालुक्य नरेश त्रिभुवनमल्ल पेर्माडिदेव की सेना को उनकी स्वामिभक्ति तथा विजयशीलता से प्रसन्न होकर विष्णुवर्धन नरेश ने उन्हें पारितोषिक मांगने को कहा। उन्होंने गोम्मटेश्वर की पूजा के निमित्त 'गोविन्दवाडि' तथा 'परम' नामक ग्राम मांगे। उसे नरेश ने सहर्ष स्वीकार किया। इन दोनों ग्रामों को गंगराज ने अपनी माता पोचलदेवी तथा अपनी भार्या लक्ष्मीदेवी द्वारा श्रवणबेलगोल में निर्मापित जिनमन्दिरों की आजीविका हेतु अर्पित करा दिया।
गंगराज जैसे पराक्रमी थे वैसे धर्मिष्ठ भी थे। लेख नं० ५९ के एक पद्य में कहा गया है कि जिस प्रकार जिन-धर्माग्रणी अतिमब्बरसि के प्रभाव से गोदावरी नदी का प्रवाह रुक गया था उसी प्रकार कावेरी के पूर से घिर जाने पर भी जिन-भक्ति के कारण गंगराज की लेशमात्र भी हानि नहीं हुई :
जिनधर्माग्रणियत्ति मब्बरसियं लोकं गुणं गोल्वुदेकेने गोदावरि निन्द कारण दिनीगलु गंगदण्डाधिनाथनुमं कावेरि पेच्चिं सुत्ति पिरिटुं नीरोत्तियुं मुट्टिति
ल्लेने सम्यक्त्वद पेम्पनिनेरेये वण्णिप्पण्णने वण्णपं।।१४।। इसके अतिरिक्त गंगराज ने गंगवाडि परगने के समस्त जिन-मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया, गोम्मटस्वामी का परकोटा बनवाया तथा अनेक स्थलों पर नये-नये मन्दिरों का निर्माण कराया। लेख में कहा गया है कि इन कृत्यों से गंगराय (चामुण्डराय-गोम्मटस्वामी के प्रतिष्ठाकारक) की अपेक्षा सौ गुने अधिक धन्य नहीं कहे जा सकते?- 'गंगराजना मुत्रिन गंगररायङ्गं नूमडिधन्यनल्ते।'
लेख में 'परम' ग्राम की सीमा दी हुई है (पद्य नं० ९) जिससे विदित होता है कि यह ग्राम श्रवणबेलगोल के समीप ही ईशान कोण में था। उक्त दान शक सं० १०३९, फाल्गुण सुदि ५, सोमवार को दिया गया था। गंगराज कुन्दकुन्दान्वय देशीगण पुस्तकगच्छ के कुक्कुटासन मलधारिदेव के शिष्य शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य थे।
गंगराज का पुत्र बोप्प भी शूरवीर योद्धा था। वह विष्णुवर्धन का सन्धिविग्रहिक था। उसने भी अपने पिता के समान अनेक जिन-मन्दिरों का निर्माण कराया। बोप्प की पत्नी भानुकीर्तिदेव की शिष्या थी। उनका पुत्र एच भी दण्डाधीश और उदार जिनभक्त था।
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