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राचमल्ल सत्यवाक्य 'द्वितीय' (८७०-९०७ ई०), महेन्द्रान्तक (९०७-९२० ई०), राचमल्ल सत्यवाक्य 'तृतीय' (९२०-९३८ ई०), बुतुग 'द्वितीय' (९३८-९५३ ई०), मरुलदेव (९५३-९६१ ई०) तथा मारसिंह पल्लवमल्ल (९६१-९७४ ई०) राजा हुए। इन राजाओं का पारिवारिक सम्बन्ध राष्ट्रकूटों से अधिक रहा है। बुतुग 'प्रथम' तो अमोघवर्ष 'प्रथम' का दामाद ही था। इन लोगों ने मिलकर वेंगी के चालुक्यों से संघर्ष किया। राचमल्ल 'द्वितीय' को चोलों के विरुद्ध अनेक युद्ध करने पड़े। राष्ट्रकूट इन गंग नरेशों को अपना अधीनस्थ सामन्त समझते थे। पर तथ्य यह है कि 'गंग' ही राष्ट्रकूटों के संरक्षक सिद्ध हुए हैं।
___ गंगराज मारसिंह बड़ा प्रतापी राजा था। श्रवणबेलगाल के कूगे ब्रह्मदेवस्तम्भ पर उत्कीर्ण शिलालेख (नं० ३८ (५९)) में कहा गया है कि मारसिंह ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज 'तृतीय' के लिये गुर्जर देश को जीता, कृष्णराज के विपक्षी अल्ल का मद चूर किया, विन्ध्य पर्वत की तली में रहने वाले किरातों के समूहों को जीता, मान्यखेट में नृप कृष्णराज के सेना की रक्षा की, इन्द्रराज 'चतुर्थ' का अभिषेक कराया, पातालमल्ल के कनिष्ठ भ्राता वज्जल को पराजित किया, वनवासी नरेश की धन-सम्पत्ति का अपहरण किया, माटूर वंश का मस्तक झुकाया, नोलम्ब कुल के नरेशों का सर्वनाश किया, काडुवट्टि जिस दुर्ग को नहीं जीत सका था, उस उच्चाङ्ग दुर्ग को स्वाधीन किया, शवराधिपति नरग का संहार किया, चोल नरेश राजादित्य को जीता, तापी-तट, मान्यखेट, गोनर, उच्चङ्गि, वनवासि व पाभसे के युद्ध जीते एवं चेर, चोल, पाण्ड्य,
और पल्लव नरेशों को परास्त किया। इसलिए धर्म महाराजाधिराज, धर्मावतार, जगदेकवीर, माण्डलिक त्रिनेत्र, नोलम्बकुलान्तकदेव, गंगविद्याधर, गंगचूड़ामणि आदि विरुदों से वह अलंकृत था। वह जैनधर्म का परम भक्त था। उसके उत्थान के लिये उसने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये तथा अनेक जिन मन्दिर और मानस्तम्भ भी बनवाये। अन्त में यह भी लिखा है कि उसने अन्तिम काल में राज्य का परित्याग कर अजितसेन भट्टारक के पास तीन दिवस तक सल्लेखना व्रत का पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया। कुडउलूर दानपत्र में भी उसे जिनभक्त तथा दर्शन, साहित्य और व्याकरण का पण्डित बताया गया है। उसके श्रुतगुरु ब्राह्मण श्रीधर भट्ट के पुत्र जैनाचार्य मुञ्जार्य वादिद्यमंगल भट्ट थे।
मारसिंह के बाद गंगराज्य का ह्रास प्रारम्भ हो गया। चालुक्यों और चोलों ने अपनी शक्ति बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया तथा राष्ट्रकूट वंश समाप्तप्राय हो गया। मारसिंह और उसके पुत्र राचमल्ल 'चतुर्थ' (९७६-८४ ई०) के मन्त्री तथा सेनापति चामुण्डराय के कारण इस वंश ने अमरता प्राप्त कर ली। गंग इतिहास के लिये यह सन्ध्याकाल था, फिर भी चामुण्डराय की वीरता और भक्ति ने गंगराज्य के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
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