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________________ ८१ ने कहा-कुमार्ग में पड़ जाने से लड़का हाथ से निकल जायेगा, किन्तु सुभद्रा के आग्रह से उसने व्यभिचारी पुरुषों को बुलाकर कहा कि मैं तुम्हें धन देता रहूँगा, तुम मेरे पुत्र को कामचेष्टा में आसक्त एवं प्रवीण बनाओ। इस प्रकार कुसंग के प्रभाव से धम्मिल भी दुराचरण करने लगा क्योंकि ऊँचा चढ़ना कठिन है, किन्तु नीचे गिरना सहज है। जिस प्रकार महल बनाना श्रमसाध्य है किन्तु उसे गिराने में कोई कठिनाई नहीं। उसी नगर में वसन्ततिलका वेश्या रहती थी जिसके राजसभा में आयोजित नृत्य में मण्डली के साथ धम्मिल भी गया और उसके प्रति आकष्ट हो उसने उसके घर जाकर प्रथम मिलन में ही वहीं स्थायी निवास बना लिया। मित्रों ने सुभद्रा सेठाणी से बात कर उसे सन्तुष्ट कर दिया। सेठ इसका दुष्परिणाम समझते थे पर दुष्ट मित्रों को धन देकर रवाना कर दिया। वेश्या को मुँह माँगा धन मिलने लगा। उसने धम्मिल को स्नान, भोजन आदि भक्ति से इतना प्रसन कर दिया कि वह रात-दिन वहीं पड़ा रहने लगा और माता-पिता, बन्धु-बान्धव सबको भुला दिया। इस प्रकार लम्बा समय बीत जाने पर सुभद्रा ने सुरेन्द्रदत्त को कहा कि आदमी भेजकर धम्मिल को बुलाओ? अन्यथा उसका मुख देखे बिना मेरे प्राण निकल जाएँगे। सेठ ने नौकरों भेजा और घर आने के लिए आग्रह किया। उसने कहा, मैं वहाँ नहीं आ सकता यहाँ बैठे ही माता-पिता को नमस्कार करता हूँ। नौकरों के निराश लौटने पर सुभद्रा रोने लगी। सुरेन्द्रदत्त ने कहा जो मनुष्य दीर्घ दृष्टि से सोचे बिना काम करते हैं उन्हें सोमिल ब्राह्मण (३) की भाँति पश्चाताप ही करना पड़ता है। “आप कमाया कामण केनै दीजै दोष" अब तो धर्मध्यान का आश्रय लो जिससे भविष्य सुधरे, सुभद्रा ने कहा प्रियतम आपका कहना सत्य है किन्तु भाग्य ही मनुष्य को मूर्ख बना देता है। इसके लिये शिव ब्राह्मण (४) का दृष्टान्त विचारणीय है। कर्म की विपरीतता से मनुष्य की बुद्धि बिगड़ जाती है। दम्पति परस्पर दुःख के दिन कथोपकथन से निर्गमन करने लगे। उनके नेत्र आँसुओं से भीगे रहते। धम्मिल-धम्मिल करते उनके प्राण निकल गए। सास-ससुर के मरणोपरान्त अन्य पारिवारिक जन भी चले गए तो यशोमती अपने गृहगुफा में सिंहनी की भाँति अकेली रहने लगी। मात-पितारूपी सूर्यास्त हो जाने से रस लोलुप भ्रमर जैसे कमलिनी को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार धम्मिल ने वसन्ततिलका को नहीं छोड़ा। उसके बारह वर्ष वेश्या गृह में बीत गए। धीरे-धीरे सारा धन समाप्त हो गया। जब अक्का ने धन लेने के लिए दासी को भेजा तो उसने यशोमती के पास जाकर कहा धम्मिल ने धन मंगाया है। पति के नाम से हर्षित होकर यशोमती ने अपने बचे-खुचे आभूषण दे दिये। पति-वियोग में वह आभूषणों का क्या करती। दासी ने जब अक्का को आभूषण दिए तो उसने यशोमती जैसी सती स्त्री की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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