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________________ ७४ ४. पूज्यपाद ६ठीं शती पूज्यपादीयकल्याणकारक, वैद्यामृत शालाक्यतन्त्र, मदनकामरत्नम्, रलाकरो षधयोगग्रन्थ,समाधिशतक। ५.. उग्रादित्याचार्य ८वीं शती कल्याणकारक गुणाकर वि०सं०१२३९ ई० अमृतरत्नावली श्री अनन्तदेवसूरि १४-१५ वीं शती रसचिन्तामणि ८. माणिक्यचन्द्र १४-१५ वीं शती रसावतार ९. मेरुत्तुंग वि०सं० १४४३/ रसाध्यायटीका ई०स० १३८९ १०. हर्षकीर्तिसूरि वि०सं० १६५७ • योगचिन्तामणि ११. समरथ वि०सं० १७६४ रसमञ्जरी १२. सोमप्रभाचार्य रसप्रयोग उपरोक्त अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि रसशास्त्र के विकास में जैनाचार्यों ने भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया। सन्दर्भ : १. तेजसिंह गौड़, जैन आयुर्वेद साहित्य की परम्परा, पृ० १. २. डॉ० राजेन्द्र प्रकाश भटनागर, जैन आयुर्वेद का इतिहास, पृ० २२. ३. वही, पृ० ७२-७३. ४. वही, पृ० ४०-४१. ५. डॉ० नन्दलाल जैन, 'उग्रादित्याचार्य का रसायन के क्षेत्र में योगदान', पृ० १८९; जैन साहित्य के आयाम, भाग ३, पं० दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, वाराणसी १९९१ ई०, पृष्ठ १८४-९३. ६. जिनरलकोश, पृ० ३२९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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