SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३ १०. हर्षकीर्तिसूरि (वि० सं० १६५७ ई०) कृत योगचिन्तामणि- इस महत्त्वपूर्ण चिकित्सा योग ग्रन्थ के रचयिता भिषग्वर जैनाचार्य श्री हर्षकीर्तिसूरि हैं। यह तपागच्छ की नागपुरीय (नागौरी) शाखा के आचार्य ‘चन्द्रकीर्तिसूरि' के शिष्य थे। हस्तलिखित प्रतियों में इसके योगचिन्तामणि के अतिरिक्त वैद्यकसारसंग्रह, वैद्यकसारोद्धार नाम भी मिलते हैं। कुछ हस्तलिखित प्रतियों में तीनों नाम एक साथ भी मिलते हैं। “नागपुरीयतपोगणराज 'श्री हर्षकीर्ति संकलिते' 'वैद्यक सारोद्धारे' तृतीयो गुटिकाधिकारः।। इति श्री नागपुरीय तपागच्छीय 'श्री हर्षकीर्तिसूरि संकलिते योगचिन्तामणो वैद्यकसारसंग्रहे' गुटिकाधिकारः तृतीयः"।।३।। (रा.प्रा.वि.प्र., उदयपुर, ग्रन्थांक १४६५, तृतीय अधिकार के अन्त की पुष्पिका)। ___ इस ग्रन्थ में प्राचीन पूर्व प्रचलित सिद्ध औषधयोगों का ही संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थ में कल्पनाओं के नाम पर सात अध्याय हैं यथा- पाक, चूर्ण, गुटी, क्वाथ, घृत, तैल और मिश्र। योगचिन्तामणि पर तेलुगु भाषा में भी टीका उपलब्ध है। ११. समरथकृत रसमञ्जरी- समरथ द्वारा रचित ग्रन्थ रसमञ्जरी की एक प्रति श्री अमरचन्द नाहटा के निजी संग्रह में भी है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि०सं० १७६७ है। यह रसविद्या सम्बन्धी ग्रन्थ है। इसका प्रकाशन वेकटेश्वर प्रेस, बम्बई से वि०सं० १९७८ में हुआ था। १२. सोमप्रभाचार्यकृत रसप्रयोग- रसप्रयोग नाम के ग्रन्थ का उल्लेख श्री अम्बालाल शाह ने "जैन साहित्य का बृहद् इतिहास" भाग ५ में किया है। जिनरलकोश में भी यह ग्रन्थ उल्लिखित है।६ तालिका द्वारा जैन आचार्य, उनके काल एवं रचनाओं का दिग्दर्शन क्र.सं. जैन आचार्य काल रचनाएँ १. पादलिप्तसूरि प्रथम-द्वितीय शती तरंगवती, ज्योतिषकरण्डक प्रकीर्णक, निर्वाणकलिका, प्रश्नप्रकाश। २. नागार्जुन दूसरी एवं तीसरी शती योगरत्नमाला, नागार्जुनीकल्प, लौहशास्त्र, ४थी से ५वीं शती अष्टांगसंग्रह, पुष्पायुर्वेद, सिद्धान्तरसायनकल्प। समन्तभद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy