SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पति के रूप में उन्हें स्वीकार कर लिया और नेमिनाथ द्वारा प्रव्रज्या लेने के बावजूद अन्यत्र सम्बन्ध करने के लिये तैयार नहीं हुई। अपने देवर रथनेमि को प्रबोधित भी किया और स्वयं संयम के मार्ग पर चल पड़ी। ध्यानस्थ रथनेमि ने एकाकी गुफा में गीले वस्त्रों को सुखाने के लिये नग्न हुई राजामती को देखकर कामेच्छा पूर्ति करने की प्रार्थना की तो पुन: उसने उसे आत्मकल्याण की ओर मोड़ा। इसे हम महिला की चारित्रिक. दृढ़ता और आध्यात्मिकता का प्रतीक कह सकते हैं। राजीमती की इस घटना पर जैनाचार्यों ने शताधिक रचनाएँ लिखी हैं। इसी तरह कृष्ण वासुदेव की माता देवकी का नाम भी उल्लेखनीय है। देवक राजा की पुत्री तथा कंस की बहिन का विवाह सौरीपुर के राजा वसुदेव से हुआ था। "बहिन देवकी के पुत्रों द्वारा मेरी मृत्यु होगी" इस भविष्यवाणी के कारण कंस ने उसके सभी पुत्रों को मार डालने की योजना बनायी। हरिणैगमेषी देव ने अपनी देवमाया से देवकी के छ: पुत्र सुलसा गाथापति के यहां तथा सुलसा के छ: मृत पुत्र देवकी के यहां अज्ञात रूप से पहुंचा दिये। उन छ: पुत्रों को वसुदेव ने प्रसव के तुरन्त बाद कंस को सौंप दिया और कंस ने उन्हें मृत समझकर फेंक दिया। संयोग से अरिष्टनेमि के संघ में ये छहों पुत्र कालान्तर में मुनि बन गये जिन्हें देखकर देवकी के स्तनों से दूध झरने लगा। स्थिति का पता चलते ही वह संसार का चिन्तन करने लगी और हर्षित हो गयी। इससे महिला की मातृत्व शक्ति और निश्छल वात्सल्य संकेतित हो रहा है। सातवीं बार देवकी के गर्भ धारण होने पर उसे गजसुकुमाल नामक पुत्र हुआ जो इसी नाम से जैन-परम्परा में एक तपस्वी मुनि के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। इस सन्दर्भ में जैन और वैदिक-परम्परा में अन्तर है। वैदिक-परम्परा में सभी पुत्रों को कंस मार डालता है, पर जैन-परम्परा के अनुसार देवकी आठ अलौकिक सन्तानों की माता थी। द्रौपदी महाभारत कथा की प्रमुख महिला पात्र है। जैन-परम्परा के अनुसार धर्मरुचि मुनि को कड़वी तुम्बी का आहार देने के फलस्वरूप वह व्याधियों से ग्रस्त होकर मरी और सुकुमालिका के रूप में जन्म लेकर सागरदत्त सार्थवाह के साथ विवाहित हुई। उसके शरीर में विद्युत होने के कारण किसी के भी साथ विवाह नहीं हुआ। साध्वी होने के बाद उद्यान में देवदत्ता गणिका को पांच पुरुषों के साथ सांसारिक भोग भोगते हुए देखकर उसने भी दृढ़ निदान किया कि वह भी अगले जन्म में ऐसा ही भोग करे। इसी ।नदान के फलस्वरूप द्रौपदी के रूप में जन्म लेकर उसके पांच पति हुए। नारद के रुष्ट होने पर उसे पद्मनाभ की कैद में रहना पड़ा, फिर भी वह पथ विचलित नहीं जैन-परम्परा में द्रौपदी कथानक पर पच्चीसों ग्रन्थ रचे गये हैं। यहां वासुदेव को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy