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६४ च तवती धत्ते स्त्री-सष्टेरनिमं पदम् (६.९८)। तदनुसार उन्होंने ब्राह्मी को सिद्धमातृका तथा सुन्दरी को गणितशास्त्र की शिक्षा दी (१०५-८)। कल्पसूत्र (टीकासूत्र २११ प. ४४१) के अनुसार ब्राह्मी ने ६४ कलायें तथा १८ प्रकार की लिपियों का ज्ञान प्राप्त किया। अन्त में दोनों ने जिनदीक्षा ग्रहण की।
__ आश्चर्य की बात है कि जिनसेन ने इन दोनों महिलाओं के अतिरिक्त अन्य किसी महिला का विशेष उल्लेख नहीं किया। गुणसेन ने अकम्पन की सुपुत्री सुलोचना के विषय में अवश्य लिखा है कि जब उसके पति चक्रवती जयकुमार हाथी सहित गंगा में डूबने लगे तब सुलोचना ने पञ्च नमस्कार मन्त्र की आराधना से इस उपसर्ग को दूर किया (४५.१४२-७)।
इसके आगे तीर्थङ्करों की माताओं का ही उल्लेख मात्र प्राय: मिलता है जो इस प्रकार है- द्वितीय तीर्थङ्कर अजितनाथ की माता विजयसेना या (४८.२१-२४) या विजयादेवी (समवायांग, १५७), सगर चक्रवर्ती की राज्ञी जयसेना (४८.५८-९), तीर्थङ्कर सम्भवनाथ की माता सुषेणा (४९.१४-१६) या सेना (त्रिषष्टिशलाका०, २.६६५-६७३), अभिनन्दननाथ की माता सिद्धार्थ (५५.१६-१८; सम० १५७), सुमतिनाथ की माता मंगला जो सत्य तथा न्यायोचित निर्णय देने में प्रवीण थीं, पद्मप्रभ की माता सुसीमा, सुपार्श्वनाथ की माता पृथ्वी, चन्द्रप्रभ की माता लक्ष्मणा, चन्द्रप्रभ या सुविधिनाथ की माता रामादेवी, शीतलनाथ की माता नन्दा, श्रेयांसनाथ की माता विष्णुदेवी, वासुपूज्य की माता जयादेवी, विमलनाथ की माता श्यामा, अनन्तनाथ की माता सुयशा, धर्मनाथ की माता सुव्रता, शान्तिनाथ की माता अचिरा, कुंथुनाथ की माता श्रीदेवी, अरनाथ की माता महादेवी, मल्लिनाथ की माता प्रभावती, मुनिसुव्रत की माता पद्मावती, नमिनाथ की माता वप्रा देवी और नेमिनाथ की माता शिवादेवी। इनके विषय में उत्तरपुराण और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित द्रष्टव्य हैं। इनमें भी इन महिलाओं के चरित को उभारा नहीं गया, मात्र नामोल्लेख-सा होकर रह गया है।
यहां हम तीर्थङ्करों की माताओं के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट महिलाओं के विषय में यथासम्भव जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि दिगम्बर-परम्परा से भिन्न श्वेताम्बर-परम्परानुसार उन्नीसवें तीर्थककर मल्लिनाथ महिला थीं। छद्मपूर्वक तपस्या करने के कारण उन्हें स्त्रीवेद का बंध हुआ। उसकी बुद्धिमत्ता, सुन्दरता, योग्यता
और नीतिपरायणता अनुपम थी। यहाँ भी आचार्यों को महिला के स्वभाव को छद्म दिखाने में संकोच नहीं हुआ। एक ओर मल्लि को महिला बताकर उसके प्रति सम्मान व्यक्त किया तो दूसरी ओर उसे प्रवञ्चक कहकर अपमानित भी किया।
__ अहिंसा और करुणा की प्रतिमूर्ति तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि की होने वाली पत्नी राजुल या राजीमती का उल्लेख भी अपरिहार्य है जिसने विवाह निश्चित होने के साथ ही अपने
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