SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१ का निर्माण करवाया था। ११३४ ई० के एक अभिलेख से संकेतित होता है कि कुमारपाल ने जालोर में पार्श्वनाथ मन्दिर बनवाया था। १० नागर्षि द्वारा रचित जालोरनगरपञ्चजिनालयचैत्यपरिपाटी से ज्ञात होता है कि १६ वीं शताब्दी तक यहां पर कई जैन मन्दिर थे। ११ जिनप्रभसूरि ने विविधतीर्थकल्प में महावीर मन्दिर के चौदहवीं शताब्दी तक विद्यमान होने की सूचना दी है। १२ जालोर जैन धर्मावलम्बियों हेतु आकर्षण का केन्द्र था, जिसका उल्लेख सिद्धसेन सूरि ने भी किया हैं। जैन आचार्य यहां यात्रा पर आते रहते थे। इसलिये जालोर में सुधारवादी विधि चैत्य आन्दोलन अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।१३ ११६८ ई० में जिनेश्वर सरि ने जालोर नगर की यात्रा की और श्रावकों को विधि मार्ग से अवगत करवाया। उनके निधन के पश्चात् जिनपतिसूरि ने अपने गुरु की स्मृति में कई उत्सव आयोजित किये, जिसमें आस-पास के क्षेत्रों के लोग भी सम्मिलित हुए।१४ __जालोर में खरतरगच्छ लोकप्रिय था, किन्तु यहाँ पर अन्य गच्छों के आचार्य भी आते रहते थे। हमें जालोर में नाणकगच्छ१५ और चन्द्रगच्छ१६ की उपस्थिति के भी प्रमाण मिलते हैं। यहाँ पर आचार्य उद्योतनसूरि, जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, असिग, जिनभद्रसूरि, धर्मसमुद्र गणि, समयसुन्दर, कर्मचन्द्र और तिलकचन्द्र आदि ने उच्चकोटि के साहित्य का सृजन किया। यशोवीर यहां का प्रसिद्ध विद्वान् था। जिनकुशलसूरि की प्रसिद्धि सुनकर उन्हें पाटन नगर में आमन्त्रित किया गया। तब वे नागौर से फलोदी, भीनमाल होते हुए जालोर आये और कुछ दिन प्रवास के पश्चात् मेड़ता होते हुए पाटन नगर पहुंचे।१७ पाटन में वे वृतोत्सव में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर उन्होंने वहाँ से तीर्थङ्करों की कई प्रतिमाएँ जालोर भेजी। इसी प्रकार खरतरगच्छ के आचार्य जिनचन्द्रसरि को औरंगजेब ने मन्त्रणा हेत आमन्त्रित किया था। उन्होंने अपना चातुर्मास जालोर में किया था१८ राठौड़ों के शासन के दौरान मंणोत नैणसी के पिता जयमल्ल ने महाराज गजसिंह (प्रथम) के समय जालोर के आदिनाथ मन्दिर में महावीर तथा पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं स्थापित करवायीं। उनके प्रयासों से कई प्राचीन मन्दिरों की मरम्मत की गई, जिसकी सूचना अभिलेखों से मिलती है। १९ जालोर मण्डल में आहोर तथा सांचोर भी जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। आहोर में सात जिनालयों का निर्माण हआ।२० इसी प्रकार सांचोर (सत्यपुर) भी जैन तीर्थ के रूप में विख्यात रहा। यहाँ पर कई ख्याति प्राप्त आचार्य प्रवास कर चुके हैं, जिनमें से हीरानन्दसूरि, जिनभद्रसूरि और समयसुन्दर जी के नाम उल्लेखनीय हैं। २१ जालोर मण्डल का अन्य सांस्कृतिक केन्द्र भीनमाल नगर (श्रीमाल) रहा। २२ १६वीं शताब्दी में पद्मनाभ ने इसे चौहानों की ब्रह्मपुरी कहकर पुकारा था।२३ सम्भवत: यहाँ नवीं शताब्दी में वर्मलाट का शासन था।२४ यह भी स्पष्ट है कि जब ब्रह्मगुप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy