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________________ ४० पाकर स्वतन्त्र हो गया। फिर जालोर कान्हड़देव के राज्यकाल तक अपनी स्वतन्त्रता का उपभोग करता रहा। १३१० ई० कान्हड़देव की पराजय के पश्चात् यह राज्य अलाउद्दीन खिलजी की सल्तनत का अंग बन गया। अलाउद्दीन की मृत्यु के उपरान्त जालोर पर राजपूतों का पुनः अधिकार हो गया । जालोर के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि सुल्तान गयासुद्दीन ने इस राज्य को जीतकर दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित कर लिया था । १५ वीं शताब्दी में महमूद बेगड़ा (गुजरात) ने जालोर जीतकर भुजफ्फरशाह द्वितीय को यहां पर अपना गवर्नर नियुक्त किया। लगभग १५४० ई० में राठोड़ राव मालदेव ने जालोर को जीत लिया। सम्राट् अकबर के समय जालोर उनके उत्तरी साम्राज्य का अंग बना रहा। औरंगजेब की मृत्यु ( १७०७ ई०) के पश्चात् जालोर जोधपुर राज्य का स्थायी अंग बन गया । ३ जालोर प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र था । यहाँ पर अन्य धर्मों की तरह जैन धर्म भी लोकप्रिय था । यद्यपि वर्द्धनकाल में ऐसा लग रहा था कि बौद्ध धर्म की तरह यहाँ जैन धर्म भी लुप्त हो जायेगा। हरिभद्रसूरि, उद्योतनसूरि और सिद्धर्षि जैसे आचार्यों के सद्प्रयासों से यहां जैन धर्म को पुनः जीवनदान मिल सका । ४ जालोर वैष्णव, शैव, शाक्त और जैन धर्म का केन्द्र था। यहां के मन्दिरों को आक्रान्ताओं ने लगभग पूर्णतया ध्वस्त कर दिया था, किन्तु साहित्यिक साक्ष्यों एवं अभिलेखों में उनके सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री मिलती है। 4 यहाँ पर आदिनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ और शान्तिनाथ के चार प्राचीन जिनालय थे, जिनका समय-समय पर जीर्णोद्वार होता रहा और श्रद्धालु उनकी व्यवस्था हेतु अनुदान देते रहते थे। ये सभी मन्दिर १३ वीं शताब्दी तक विद्यमान थे । ६ जैन परम्परा के अनुसार प्रतिहार शासक नागभट्ट 'प्रथम' जैन आचार्य यक्षदेव से अत्यन्त प्रभावित था। उसके राज्य काल में सम्पूर्ण गुर्जर प्रदेश जैन मन्दिरों से परिपूर्ण हो गया और अनेक लोगों ने जैन धर्म स्वीकार किया। ७ नागभट्ट द्वितीय' ने भी जालोर दुर्ग में एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया ।' प्रतिहार सम्राट् नागभट्ट, जैन आचार्य पट्टि के प्रति श्रद्धावान् थे । ९ पूर्व मध्यकाल में जालोर जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र बन गया । यहाँ के चाहमान शासक समरसिंह और उदयसिंह ने जैन धर्म के उत्थान में विशेष सहयोग दिया । परिणामस्वरूप उनके शासनकाल में यहाँ कई जैन मन्दिर निर्मित हुए और प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार हुआ। इस कार्य में जनसामान्य, जैनाचार्यों और मन्त्री यशोवीर का पूर्ण सहयोग मिला। चौलुक्य नरेश कुमारपाल जैन धर्म के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित था। उसने अपने राज्य में २१ शास्त्रागार स्थापित किये। मेरुतुंग के अनुसार कुमारपाल ने १४४० मन्दिरों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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