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________________ और अब समय की मांग है कि अपभ्रंश साहित्य में अनुस्यूत पर्यावरणीय चेतना को उजागर किया जाए। ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि उस युग में पर्यावरण या पर्यावरण-असन्तुलन जैसी समस्याएँ नहीं थीं। अत: पर्यावरण या इसके प्रदूषण जैसे विषयों का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता। परन्तु पर्यावरण का अस्तित्व सदैव विद्यमान था और रहेगा भी। यह सम्भव ही नहीं है कि कवि या रचनाकार अपनी जीवन्त रचनाओं में पर्यावरणीय चेतना अर्थात् वायुमण्डल एवं परिवेश तथा वातावरण की उपेक्षा करके जीवित रह पाएगा। यह सच है कि न अद्दहमाण पर्यावरणविद् थे और न अपभ्रंश साहित्य के स्वयंभू, पुष्पदन्त, नयनन्दि, कनकामर, वीर कवि आदि-आदि ही पर्यावरणविद् थे। परन्तु साथ-साथ यह भी उतना ही सच है कि उक्त अपभ्रंश साहित्य में प्रकृति-सौन्दर्य एवं उसके सौरभ-वैभव का अद्भुत चित्रण हुआ है। परिणामत: उन रचनाकारों के वनस्पतियों, जीवों, जड़पदार्थों आदि सम्बन्धी चिन्तन की जितनी सराहना की जाए, कम ही होगी। पर्यावरणीय चेतना को अपने गर्भ में धारण किए हुए अपभ्रंश साहित्य आज के मानव को पर्यावरण से जुड़ने की प्रेरणा अवश्य दे सकता है। हमें ध्यान रखना होगा कि वर्तमान पर्यावरण सम्बन्धी चिन्ताओं में प्रकृति के साथ मनुष्य के सम्बन्धों के छीजते जाने के प्रति चिन्ता सर्वप्रमुख है। इस चिन्ता से लड़ने के लिए अपभ्रंश साहित्य की विविध रचनाओं से पर्याप्त सहायता ली जा सकती है। मैंने सुविधा के लिए एक रचना को आधार बनाया था। अपभ्रंश भाषा का साहित्य निरन्तर प्रकाश में आता जा रहा है। अत: अपभ्रंश साहित्य को नई दृष्टि से खंगाला जाए, तो हमें उसमें से अनेक रत्न उपलब्ध हो सकते हैं। सन्दर्भ : १. सरला देवी, संरक्षण या विनाश, द्वितीय संस्करण १९८१, ज्ञानोदय प्रकाशन, हल्द्वानी (नैनीताल), भूमिका, पृ० १३. २. तदेव. ३. तदेव, (सन्तुलन-शास्त्र) पृ० २. ४. हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृ० ३४. विशेष अध्ययन के लिए देखें- (अ) तदेव. (ब) प्रेमचन्द्र जैन, अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक, प्रका०- पा०वि० शोध-संस्थान, वाराणसी-५, सन् १९७३. (स) नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योगदान, प्रका०लोक भारती, १९७१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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