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सुनिश्चित है। इनकी रचनाओं की विशेषता यह है कि वे लोकभोग्य रही हैं जिनसे उनका जनमानस में अत्यधिक प्रचार-प्रसार हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक में सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ० कविन शाह ने दीपविजय जी महाराज की कृतियों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। ठीक इसी प्रकार विक्रम संवत् की २१वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुए श्रावक कवि मनसुख लाल की कृतियों का भी उन्होंने अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण ढंग से आलोचनात्मक अध्ययन किया है। वस्तुत: डॉ० शाह द्वारा लिखे गये उक्त ग्रन्थ अपने आप में एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि जैन-परम्परा में १६-२०वीं शती के मध्य हुए सभी प्रमुख रचनाकारों की कृतियों का इसी प्रकार विश्लेषणात्मक अध्ययन हो। आशा है डॉ० शाह के उक्त कृतियों से प्रेरणा लेकर भविष्य में अन्य रचनाकारों पर भी शोधकार्य होगा।
टिरहित सुस्पष्ट मुद्रण डॉ० शाह के पुस्तकों की विशेषता है। निःसन्देह उनकी अन्य कृतियों की भांति उक्त कृतियों का विद्वद्जगत् में यथेष्ट प्रचार-प्रसार होगा।
साभार प्राप्त जैन तत्त्वनी नवकारवाणी- प्रवचनकार- पूज्य आचार्यदेव श्री जगवल्लभसूरि जी०म० सा०, प्रकाशक- धर्मचक्र प्रभावक ट्रस्ट, विल्होली, मुम्बई- आगरा रोड, नासिक (महाराष्ट्र), आकार-- पॉकेट साइज, पृष्ठ ४८; मूल्य १०/- रुपये।
विजयी भव- (आर्यिकारत्न विजयमति माताजी के प्रवचनों का संग्रह) संग्रहक:- श्रीमती स्नेहलता जैन; सम्पादक- श्री महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज'; प्रकाशकश्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पुस कालय एवं वाचनालय, भेलूपुर, वाराणसी; आकारडिमाई, पृष्ठ १०+१३४.
आत्मतरंग- रचनाकार- श्री राजमल पवैया; प्रकाशक- श्री कानजी स्वामी ग्रन्थमाला, ४४, इब्राहिमपुरा, भोपाल; आकार- डिमाई; पृष्ठ ९४; मूल्य- ११/रुपये.
श्री शीतलनाथ पंचकल्याणक विधान- रचनाकार- श्री राजमल पंवैया, प्रकाशक- श्री भरत पवैया, तारादेवी पवैया ग्रन्थमाला, ४४ इब्राहीमपुरा, भोपाल, आकार-- डिमाई; पृष्ठ ९२; मूल्य- १२/- रुपये।
कर्मनुं कम्प्यूटर- लेखक- प०पू० श्री चन्द्रशेखरविजय जी०म० सा० के शिष्य मुनि मेघदर्शनविजय; प्रकाशक- अखिल भारतीय संस्कृति रक्षक दल, चन्दनबेन केशवलाल संस्कृति भवन, गोपीपुरा, सुभाष चौक, सूरत, प्रथम संस्करण १९९९ ई०; पृष्ठ ६+१७७; मूल्य- ३०/- रुपये।
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