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________________ साहित्य-सत्कार गुरुकृपा नवनिधान, भाग १-२; प्रणेता- आचार्यश्री विजयजगवल्लभ सूरि; सम्पादक- मुनिश्री चारित्रवल्लभविजय एवं मुनिश्री दर्शनवल्लभविजय; प्रकाशकधर्मचक्र प्रभावक परिवार द्वारा श्री महेशभाई शाह, शाह ब्रदर्स, लीमडीशेरी, पेटलाद, जिला- आणंद (गुजरात); प्रथम संस्करण- २००० ई०; आकार- डिमाई; पक्की बाइण्डिंग; प्रथम भाग, पृष्ठ २५६; द्वितीय भाग, पृष्ठ ३०९; अनेक बहुरंगी चित्र; मूल्य- जिनभक्ति (सदुपयोग)। तपागच्छ के विभिन्न प्रभावशाली समुदायों में विजय प्रेम भुवनभानुसूरीश्वर जी महाराज का समुदाय भी एक है। इस समुदाय में बड़ी संख्या में विद्वान् आचार्य और मुनि हो चुके हैं और आज भी विभिन्न विद्वान् मुनिजन विद्यमान हैं जिनमें धर्मचक्र तप प्रभावक आचार्यश्री जगवल्लभ सरि जी महाराज अग्रगण्य हैं। आपकी कवित्वशक्ति अद्भुत है। प्रस्तुत पुस्तक आप द्वारा विभित्र चातुर्मास स्थलों एवं प्रतिष्ठा महोत्सवों के अवसर पर रचित भक्ति रचनाओं का संकलन है। सरल गुजराती भाषा में रचित उक्त रचनाएँ श्रद्धालु भक्तजनों के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं। भक्तजनों के बीच इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार हो, इसी लिये इसका मूल्य रुपये में नहीं अपितु जिनभक्ति (सदुपयोग) ही रखा गया है। पुस्तक में अनेक रंगीन चित्र दिये गये हैं और अत्यन्त कलात्मक ढंग से सर्वश्रेष्ठ कागज पर इसका मुद्रण हुआ है। प्रकाशक की उदार दृष्टि के कारण इसका भक्तजनों में प्रचार-प्रसार अत्यधिक होगा, इसमें सन्देह नहीं है। जैन शासनशिरोमणि तपागच्छीय विजय प्रेम भुवनभानुसूरीश्वर समुदाय माहिति दर्पण; सम्पादक- गच्छाधिपति आचार्यश्री जयघोषसरि के शिष्य पंन्यास हरिकान्तविजय गणि; प्रकाशक- जिनाज्ञा प्रकाशन कार्यालय द्वारा दिव्यदर्शन ट्रस्ट, ३६, कलिकुण्ड सोसायटी, धोलका, जिला- अहमदाबाद; प्रथम संस्करण२०००ई०; पृष्ठ २५+१९६; मूल्य- सदुपयोग। प्रस्तुत पुस्तक विजय प्रेम भुवनभानुसूरीश्वर समुदाय में विद्यमान २९४ मुनि भगवन्तों एवं ५४ स्वर्गस्थ मुनिराजों का जन्म, दीक्षा, बड़ी दीक्षा, गृहस्थ अवस्था में नाम, उनके माता-पिता का नाम, जन्मस्थान, गुरु का नाम, शिष्य सम्पदा तथा उनके विशेष कार्यों का संक्षिप्त तालिका के रूप में विवरण दिया गया है। यह पुस्तक कुल १२ अध्यायों में विभक्त है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में विद्वान् सम्पादक ने प्रासंगिक और सम्पादकीय के पश्चात् भगवान् महावीर की पाट-परम्परा देते हुए आचार्य प्रेमसूरि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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