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नियति में पक्षपात नहीं, परिवर्तन का क्रम है। उसे ही स्वीकार करें, विवाद में न उलझें। जिंदगी की सफलता वैभव, सम्मान व विलास से मत आंको बल्कि अपना भविष्य कितना संवारा जा सका और दूसरों का कितना उत्कर्ष बन पड़ा, से आंका जा सकता है। सच्ची मैत्री, भावना, स्नेह, सद्भाव एवं सुन्दर अनुभव से ही व्यक्ति आदर्श होता है और श्रेष्ठतम आदर्शों के अनुकूल आचरण ही प्रेरक होता है। श्रेष्ठ व्यक्तित्व का आवश्यक तत्व है सज्जनता, विनयशीलता, शिष्टता, उदारता, सरलता और दृढ़ आत्मविश्वास। यह मेरा और यह तेरा ऐसी भावना जब तक नहीं मिटती तब तक मोक्ष की प्राप्ति मुश्किल है। देव-गुरु-धर्म का गुलाम बनकर रहने वाला जगत् का गुलाम कभी नहीं बनता। सरकार का वारंट किसी बहाने वापस किया जा सकता है किन्तु मृत्यु का वारंट वापस नहीं किया जा सकता। दु:ख मनुष्य को निराश बनाने के लिए नहीं, उसे सावधान करने आते हैं। जीवन के प्रत्येक आचरण में निर्मलता जरूरी है। स्वार्थ हमेशा चिंताग्रस्त करता है। श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी चाहिए। वह हमें ही नहीं आसपास भी प्रकाश देती है। सत्याग्रही में सत्य का आग्रह - सत्य का बल होना चाहिए। शृंगार ही अहंकार है, विषय सुख ही सजा है, इसके स्नेहियों की आत्मा का बुरा हाल है और यही भयंकर काल है।
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