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________________ ब्ध-वाणी - - चेनराज लूनिया धूप सेंकने, कपड़ा सुखाने से लेकर सूर्य शक्ति की प्रचंड ऊर्जा उपलब्ध करने वाले यंत्रों का प्रयोग करने तक की अनेक विधि व्यवस्थाएँ मनुष्य स्वयं बनाता है। सूर्य को इससे न तो प्रसन्नता है और न अप्रसन्नता। वह इन प्रयोक्ताओं पर प्रसन्न होता हो या महल- कन्दराओं में रहकर धूप से बचे रहने वालों पर अप्रसन्न होता हो, ऐसी कोई बात नहीं है। यदि तथ्य सशक्त हो और संकल्प में सच्चाई हो तो छोटा शुभारम्भ भी क्रमश: बढ़ सकता है और समयानुसार पूर्णता तक पहुँच सकता है। शिक्षा का संवर्द्धन और चिन्तन व चरित्र में उत्कृष्टता का समावेश करने वाली विद्या का पुनरुत्थान जरूरी है। आत्मिक प्रगति के चार सूत्र हैं साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा। जब भी शारीरिक शिथिलता महसूस हो, प्रमाद बढ़े, आयम्बिल की तपस्या कीजिए। एक आयम्बिल में असाधारण शक्ति है। जीव आप ही कर्म करता है आप ही फल भोगता है। अच्छे कर्मों का अच्छा फल निर्विवाद सत्य है। कौन कितना सौभाग्यशाली है इसके उत्तर में उसके पद-वैभव- प्रभाव आदि की नाप-तौल की जाती है। सुविधा साधनों के सहारे इस प्रकार का मूल्यांकन किया जाता है जबकि देखा यह जाना चाहिए कि गुण, कर्म, स्वभाव, चरित्र की दृष्टि से कौन किस स्तर पर रह रहा है। वास्तविक उपार्जन एक ही है- परिस्कृत व्यक्तित्व। इसके सम्पादित करने में जो जितना सफल रहा है समझना चाहिए कि उसने मनुष्य जन्म के सौभाग्य का लाभ उसी अनुपात में उठा लिया। यह तो बिडम्बना ही है कि मनुष्य बाह्य संसार एवं सम्बन्धित वस्तुओं के विषय में अधिकाधिक जानकारियाँ एकत्रित तो करता है, पर स्वयं अपने विषय में अपरिचित बना रहता है। अपने स्वरूप का बोध न होने तथा सांसारिक आकर्षणों में भटकते रहने से अंतत: भटकाव ही हाथ लगता है। मनुष्य क्या है? जीवन का स्वरूप एवं लक्ष्य क्या है? जीवन के साथ जुड़े संसार एवं विभूतियों का सही उपयोग क्या है? इन प्रश्नों की उपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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